Saturday, October 8, 2011

Hindi Short Story Tooti Chaht Ka Makan By M.Mubin

कहानी टूटी छत का मकान लेखक एम. मुबीन
घर मे आकेल और बेजार बैठा था वह ।
कभी कभी आकेले रहना भी कितना यातनादायक होता है । आकेले बैठे र्निउद्देश घरकी एक एक चीज को घूरते रहो । सोचने के लिए कोई विचार और विषय भी तो पास नहीं होता है कि उसी के बारे में सोचा जाए ।
आजीब आजीब से विचार और विषय मस्तिष्‍क में आते है । जिनपर सोचकर कुछ भी हासिल नहीं होती है । उसने अपना सिर झटककर उन र्निउद्देश मस्तिष्‍क में आनेवाले विचारों को मस्तिष्‍क से निकाल और छत को घूरने लगा।
सपेकद दूध सी छत बेदाग जिस के चार कोनों पर चार दुधिया बलब और बीच में एक झूमर लटक रहा था ।
गत दिनों वह झूमर उसने मद्रास से लया था । पूरे तीस हजार रूपये का था ।
‘‘एक झूमर तीस हजार रूपये का’’ सोचकर वहं हंस पडा । घरमें ऐसी कई चीजे है जिनकी कीमत लखों रूपये तक होगी और पूरा मकान । एक करोड का नहीं तो चालीस-पचास लख का जरूर होगा । चालीस-पचाल लख के मकान वाली छत जिसे वह उस समय घूर रहा था ।
दस बीस साल पहले उसने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसके सिर के उपर चालीस-पचास लख रूपयों की छत होगी ।
आज यह हालत है ।
कभी यह स्थिती थी कि टूटी छत के मकान में रहना पडता था ।
टूटी छत का मकान ।
क़्या कभी वह उसे भूल सकता है ? नहीं कभी नहीं ! इन्सान को जिस तरह आच्छे दिन हमेशा याद रहते है, वैसे ही वह अपने बुरे दिन भी कभी नहीं भूल पाता है और उसने तो उस टूटी छत के मकान में पूरे दो साल गुजारे थे तब कहीं जाकर वह छत बनी थी । उस टूटी छत के नीचे उसने उसके परिवार वालों ने कितने कळ उठाए थे ! उन कष्‍टों को वह कभी नहीं भूल सकता ।
मकाम, मकानी छत किस लिए होती है ? सर्दी, धूप, वर्षा, गर्मी, हवा से इन्सान की रश करने के लिए मकान में रहने का यही आर्थ तो होता है ।
परंतु जिस मकाम की छत ही टूटी हो उसमें रहना क़्या मनी ?
वर्षा के दिनों में वर्षा का पानी घर में आकर पूरे घर को जलथल करता इस तरह बहता है जैसे सडक पर पानी बह रहा हो ।
धूप सात बजे से ही घर में घुसकर शरीर में सुईयां सी चुभाोने लगती है । दिन हो या रात सर्दी शरीर में कपकपी पैदा करती रहती है ।
खुली सडक पर रहना कभी कभी अच्‍छा लगता है । टूटी छत के मकान में रहने से । छत टूट गई थी । छत के टूटने पर उनका कोई बस नहीं था । मकान कापकी पुराना हो चुका था । दादाजी कहते थे मेरे दादाने मकान बनाया है । घर की छत और जिन लकाडियों पर छत टिकी थी वह सैंकडो, गर्मी, सर्दी, बारिशें देख चुकी थी । आंत उसकी सहनशीलता जवाब दे गई । एक दिन जब घर मे कोई नहीं था सब किसीना किसी काम से घर के बाहर गए थे । छत ढह गई । कोई जानी नुकसान तो नहीं हुआ परंतु उनका सारा संसार मिटटी तले दब गया। बडी मुश्किल और मेहनत से मं, पिताजी और सब बहन भाईयों ने उस संसार की एक एक चीज को मिटटी से बाहर निकाल था ।
सारी मिटटी निकालकर आंगन में ढेर की थी । सड गल गई लकाडियों को एक ओर जम किया था और घर की सापक स फाई करके मकान के पकर्श को रहने योग्य बनाया था ।
उसके बाद दो वर्ष तक उस मकानकी छत नहीं बन सकी ।
छत की मिटटी वर्षा में बहती गई, गरमी, सर्दी से दबकर जमीन के समतल हो गई, सारी लकाडियां इंधन की तौरपर इस्तेमल हो गई और घर में उनके परिवार के साथ गरमी, सर्दी, वर्षा का बसेरा हो गया । पिताजी की इतनी आमदनी नहीं थी कि छत बनाई जा सके । जो कुछ कमते ते मुश्किल से उससे उनका घर चलता था और शिश का खर्च पूरा होता था ।
यह जानकर ही घरके हर सदस्य ने उस टूटी छत के मकान से समझौता किया था । और चार दिवारी में रहकर भी बेघर होनेकी हर पीडाको चुपचाप सह रहे थे ।
उसके बाद घर की छत उस समय बनी जब पिताजी ने जमीन का एक टुकडा बेच दिया ।
आज सोचता है तो अनुभव होता है जैसे भागवान ने उस टूटी छत के नीचे इतने संयम से रहने, कोई शिकायत ना करने सब्र करने का इनाम उसे उस घर के रूप में दिया है । यदि वह शहर के किसी भी व्‍यक्ति को यह बता दे कि वह शहर के किस बाग में और किस इमरत में रहता है तो वह उस के भाग्य से ईय्र्र्या करने लगे ।
उस क्षेत्र में, उस क्षेत्र में बनी इमरतों में रहने का लेग सिर्फ सपना देखा करते है ।
परंतु वह वहां पर वास्ताविक जीवन जी रहा था । एक ऐसी छत के नीचे जिस का नाम सुनकर ही हर कोई उसकी हैसीयत और भाग्य का आनुमन लगा लेता है ।
वह छत जो उसे उसके परिवार वालों को गर्मी, सर्दी, वर्षा से बचाती है । बताची क़्या है त्रऋतुए उसके मकान ने प्रवेश करने का सपना भी नहीं देख सकती है ।
उसके घर की अपनी त्रऋतुए है । जिनपर उसका उसके घर वालों का बस है । वे मौसम उनके बसमें है । मौसमें का उस घर पर कोई बस नहीं है ।
बाहर गर्मी पड रही है । ए.सी. चालू कर दिया । भीतर काश्मीर का मौसम छा गया । बाहर सर्दी है, परंतू पूरा मकान अपने भीतर मीठी मीठी तापिश समए हुए है ।
हवाए अपनी बस में है ।
हर चीज पर अपना राज है ।
दरवाजे का ताल आटोमौटिक है । घर के सदस्यों के स्पर्श के बिना नहीं खुल सकता । पकर्श पर पूरानी कालीन बिछा है । ड्राईंग रूम एक मिनी थिएटर सा है । हा डिस्कवरी चैनल की 7 पकीट के पर्दे पर दिखाई देता है । पूरी बिल्डिंग में उसकी हैसीयत के लेग सहते है । बलकी कुछ तो उससे बढकर बैसीयत के मलिक है ।
गुप्ताजी का एक़्सपोर्ट बिजनेस है । मित्तल जी एक छोटे से उद्याोग समूह के स्वामी है । शाह शहर का नामी फाइनान्सर है । निकम एक बडा सरकारी आपकसर है । हर कोई एक दूसरे से बढकर है । यह आलग बात है कि वे एक दूसरे से कितने पारिचित है । या एक दूसरे के लिए कितने आजनबी है . यह तो वे भी नहीं बता सकते है ।
जब एक दूसरे के घर किसी मौके, बे मौके पार्टी हो तो वे एक दूसरे से मिलते है और एक दूसरे का घर देखकर जानते है कि उस के ङर क़्या नई चीज आई है जो अब तक उनके घर में नहीं है और फिर वह चीज सबसे पहले लने की होड लग जाती है और कुछ दिनों के बाद हर घरके लिए वह वस्तु एक सामन्य सी चीज बन जाती है ।
सीढियां उतरते हुए या सीढियां चढते कोई मिल जाता है तो वे एक दूसरे से औपचारिक बाते भी कर लेते है ।
उनकी खुशियां तो सामूहिक होती है । एक दूसरे की खुशियों में सभी शामिल होते है । परंतु उनके दु:ख उनके अपने होते है । गम में कोई भी किसी को सांत्वना देने नहीं जाता ।
अपने दु:ख उन्‍हे स्वयं को ही भाोगने पडते है । तभी तो जब शाह पर दिल का दौरा पडा और वह दस दिनों तक आस्पताल में रह आया भी तो किसी को पता नहीं चल । ना तो उसके घर वालों ने किसी को बताया कि शाह कहा है, ना इतने दिनों तक उन्‍हे शाह की कभी अनुभव हुई ।
मलूम पड भी जाता तो क़्या कर लेते ? आस्पताल जाकर शाह की खैरियत पूछ आते और जाने में जो बहुमूल्‍य समय भंग होता उसके लिए शाह को कोसते ।
इस बात को हर कोई समझना था कि वह किसी का समय कीमती था इसलिए वे एक दूसरे को अपनी ऐसी खबर, या बात का पता चलने ही नहीं देते थी जिनसे दूसरों का बहुमूल्‍य समय भंग हो । मितल पर हमल करके गुंडो ने उसका सुटकेस छीन लिया । जिसमे दस लख रूपये थे । यह खबर भी उन्‍हे दो दिन बाद मलूम पडी जब उन्‍हों आखबारों में पडी ।
दो दिन तक मित्तल ने भी किसी को यह बताने की जरूरत अनुभव नहीं की ।
गुप्ता जी की कार का एक़्साीडंट हो गया उन्‍हे कापकी चोटें आई दस दिनों तक वे आस्पताल में रहे उन्‍हे पाच दिनों बाद गुप्ता के साथ हुई दुर्घटना का पता चल ।
दस मंजिल उंची इमरत थी हर मंजिल पर एक परिवार का कब्जा था। कहीं कहीं दो तीन परिवार आबाद थे । परंतु बरसों बाद पता चल था कि पांचवी मंजिल पर कोई नया आदमी रहने आया है । पांचवी मंजिल वाल सिन्ड़ा कब छोड गया पता ही नहीं चल ।
हर किसी का जीवन उसका मकान, उसका परिवार और ज्यादा से ज्यादा अपने पक़्लेर तक सीमित था उसके बाद अपना व्यवसाय । हर किसी की दुनिया बस इन्ड़ाीं दो नुक़्तों तक सीमित थी । बाहर की दुनिया से उन्‍हे कुछ लेना देना नहीं था ।
आचानक वह घटना हो गई ।
शाह के घर डाका पडा । लुटेरे शाह का बहुत कुछ लूट ले गए । उसकी पत्‍नी और बेटी की हत्या कर दी । शाह को मार मारके आधमरा कर दिया । जिससे वह कोम में चल गया । दो नौकरो को मर डाल । वाचमेन को घायल कर दिया । लिपक़्टमौन के सिर को ऐसी चोट लगी कि वह पागल हो गया ।
इतना सब हो गया परंतु फिर भी किसी को पता नहीं चल सका ।
सवेरे जब वाचमौन को होश आया तो उसने शार मचाया कि रात कुछ लुटेरे आए थे उन्‍हों उसे मरकर आचेत कर दिया था । लिपक़्टमेन लिपक़्ट में बेहोश मिल और शाह का घर खुल मिल ।
भीतर गए तो भीतर घायल शाह और लशे उनकी राह देख रही थी ।
जांच पडताल के लिए पुलिस की एक पूरी बटालियन आई और उसने पूरी बिल्डिंग को अपने घेरे में ले लिया । पहले हर घर प्रमुख को बुल बुलकर पूछताछ की जाने लगी ।
घटना जब घट रही थी आप क़्या कर रहे थे ? घटना का आपको पता कब चल ? आपके पडोस में आपकी बिल्डिंग में इतनी बडी घटना हो गई और आपको पता तक नहीं चल सका ? आपके शाह से कैसे संबंध थे ? क़्या किसी ने शाह के घर की मुखाबिरी की है ? बिना मुखाबिरी के लुटेरे घर में घुसकर लूटने चोरी तकने का साहस नहीं कर सकते । घर प्रमुख से पूछताछ से भी पुलीस की तसलली नहीं हुई तो हर घर में घुसकर घर के हर सदस्य, छोटे बडे बच्चे, बूढे से पूछताछ करने लगी । उसके बाद रोजाना एक दो को पुलिस चौकी बुलकर उन्‍हे घंटो पुलिस चौकी में बिफ़्या जाता और उनसे आजीब आजीब सवाल किए जाते और पूछ ताछ की जाती ।
कभी आजीब से चोर बदमशों के सामने ले जाकर खडा कर दिया जाता और पूछा जाता -
क़्या इन्‍हे पहचानते हो ? इन्‍हे कबी बिल्डिंग के आसपास देखा था ? तो कभी उन बदमशो को लेकर पुलिस स्वयं घर पहुंच जाती और घर की स्त्रियों, बच्चों को उन बदमशों को बताकर उलटे सीधे प्रश्न करने लगती ।
जब वे रात आफिस से घर आते थो भायभीत स्त्रियां और बच्चे उन्‍हे पुलिस के आगमन की भायानक कहानियां सुनाती ।
एक दिन पुलिस की एक पुरी टुकडी दमदनाती हुई बिल्डिंग में घुस आई और हर घर की तलशी लेने लगी ।
कुछ लेगों ने आपात्ति की तो सापक कह दिया “हमें शक है कि इस वारदात में इसी इमरत में रहने वाले किसी आदमी का हाथ है और चोरी गया सामन इसी इमरत में है इसलिए हम पूरी इमरत के घरों की तलशी का वारंट ले आए है ?”
पुलिस के पास सर्च वारंट था हर कोई विवश था । पुलिस सर्च के नामपर उनके कीमती सामन की तोडपकोड कर रही थी और हर चीज के बारे में तरह तरह के सवालत कर रही थी ।
तलशी के बाद भी पूरी तरह पुलिस का मन नही भारा । हर मंजिल के एक दो घर प्रमुख को बयान लेने के मनपर पुलिस स्टेशन ले गई और बिना वजह चार पांच घंटे बिफ़्ने के बाद छोडा ।
क़्या क़्या चोरी गया अब तक यह तो पोलिस भी निश्चित नहीं कर सकी थी ।
इस बारे में जानकारी देनेवाल शाह कोम में था । उसकी पत्‍नी, बेटी और नौकर मर चुके थे । दो बेटे जो आलग रहते थे इस बारे में कुछ बता नहीं पाए थे ।
इमरत के बाहर पुलिस का कडा पहरा लगा दिया गया । चार सिपाही हमेशा डयूटी पर रहते । रात को कभी भी बेल बजाते और दरवाजा खोलने पर केवल इतना पूछते -
“सब ठीक है ना ?”
“हा ठीक है” उत्तर सुनकर आतंकित करके, रात की मीठी नींद खराब करके वे आगे बढ जाते । कोई कुछ नहीं बोल पाता । विवशता से सबुकछ सह लेते ।
पुलिस अपने कर्तव्य का पालन जो कर रही थी ।
हर कोई इस नई मुसीबत से परेशान था ।
हर कोई इज्जतदार आदमी था ।
यह तह किया गया कि एक डेलीगेशन के रूप में जाकर पुलिस कामिश्नर से बात करें कि वे पुलिस का पहरा वहां से हटा ले और पुलिस को निर्देश दें कि इस प्रकार उन्‍हे वक़्त बे वक़्त तंग न करें थाने न बुलएं न घर आए।
सभी इसके लिए तैयार हो गए ।
क़्योंकि इन घटनाओं की वजह से हर कोई परेशान था । कामिश्नर से मिलना इतना आसान नहीं था । परंतु मित्तल ने किसी तरह प्रबंध कर ही लिया। उन्‍हों अपनी समस्या कामिश्नर के सामने रखी । वह चुपचाप सबकी बाते सुनता रहा जब सब अपनी सुना चुके और उसकी बारी आई तो भाडक उठा ।
आप शहर के इज्जतदार, शरीपक धनी लेग मुझसे कह रहे है कि मैं पुलिस के कामें में दखल दूं ! आप ममले की संगीनी को समझते है ? पूरे चार कत्ला हुए है चार ! और लुटेरे क़्या क़्या चुरा कर ले गए है अभी तक पता नहीं चल सका चारों ओर से पुलिस की थू थू हो रही है । हर ऐरा गैरा आकर पूछता है कि शाह डकैती के संबंध में पुलिस ने क़्या किया ? हर किसी को जवाब देना पडता है आखबारों ने तो मामला इतना उछाल है कि प्रधानमंत्री तक पूछ रहे है कि मामला कहा तक पहुंचा । ऐसे में पुलिस अपनी तौर पर जो कर रही है और आप कह रहे है मैं पुलिस को अपना काम करने से रोूंक ? आप देश के सफ्रय नागारिक है पुलिस की सहायता करना आपकाकर्तव्य है । सोचिए ! क़्या यह दुरूस्त है ? मेरा आपको परामर्श है आप जाईए पुलिस की सहायता कीजिए । पुलिस को अपनी तौरे पर काम करने दीजिए
सब अपना सा मुंह लेकर आ गए ।
शाम को फिर बिल्डिंग में पुलिस आई । इन्पेक़्टर का पारा सातवें आसमन पर था ।
“हमरी शिकायत लेकर कामिश्नर सहाब के पास गए थे । क़्या किया है हमने जो हमरी शिकायत की ? तुम लेगों को शरीपक लेग समझकर हम शरापकत से पेश आ रहे है । वरना आगर पुलिस का आसली रूप बताया तो नानी याद आ जाएगी । इस ममले में सब को आंदर कर सकता हूं । कानून के हाथ बहुत लांबे है ।” वे इन्सपेक़्टर की बातों का क़्या उत्तर दे सकते थे । चुपचाप सुनते रहे ।
पुलिस की अपनी तौर पर जांच आरंभा हुई । इस बार वे पूछताछ इस तरह कर रहे थे जैसे आदी मुजारिमें के साथ करते है । खून का घूंट फिर विवभूता से वह उनका र्दुव्यवहांर सहन करते रहे । जहा उनसे कोई गलती होती पुलिस वाले भाद्दाी गालियां देने लगते ।
रात के बारह बज रहे थे । पुलिस चली गई थी परंतु फिर भी उसकी आंखो में नींद नहीं थी । उसे आनुमन था हर घर कोई न कोई आदमी उसकी तरह जाग रहा होगा । सबकी स्थिति उसकी जैसी होगी । बार बार उसकी नदर छत की ओर उठा जाती थी । क़्या इस छत के नीचे वह सुरक्षित है ? शाह का परिवार कहा सुरक्षित रह सका ? फिर आखों के सामने अपना टूटी छत का मकान घूम जाता था । उस छत के नीचे सर्दी में फ़्फ़्ूिर कर, वर्षा में भीगकर, हवाओं के थपेडे सड़कर भी वे अपने घर वालों के साथ मीठी नींद सो जाते थे ।
परंतु इस छत के नीचे ............ द द


अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

Hindi Short Story Hirni By M.Mubin

कहानी हिरनी लेखक एम. मुबीन
जब वह घर से निकली तो 9 बज रहे थे । तेज लेकल ट्रेन तो मिलने से रही, धीमी लेकल से ही जाना पडेगा । वह भी समय पर मिल गई तो ठीक! वरना यह तय है कि आज फिर वह देरी से आफिस पहुंचेगी और आफिस लेट पहुंचने का आर्थ ?
इस विचार से ही उसके मथे पर बल पड गए और भावें तन गई, आखों के सामने बास का चेहरा घूम गया और कानों में उसकी गरजदार आवाज गूंजने लगी ।
‘‘मिसेज महात्रे आप आज फिर लेट आई है ? मेरे बार बार कहने पर भी आप लेट आती है आपकी इस ढिटाई पर मुझे गुस्सा आता है । आपको शर्म आनी चाहिए बार बार ताकीद करने पर भी आप वही हरकत करती है । आज के बाद मैं आपके साथ कोई भी रियायत नहीं बरतूंगा ?’’
कोई उससे टकराया और उसके विचारों की ढ़ाॄंखल फ्रांग हो गई ।
वह सडक पर थी भी और यातायात भारी सडक उसे पार करनी थी इसलिए होश में रहना बहुत जरूरी था । मस्तिष्‍क कहीं और हो, मन कहीं और ऐसे में सडक पार करने का आर्थ किसी दुर्घटना को निमंत्रण देना जो उससे टकराया वह तो हीं दूर चल गया । उसके उससे इस तरह टकराने परभी उसे उस टकराने वाले पर कोई क्रोधनहीं आया । अच्‍छा हुआ वह उससे टकरा गया उसके विचारों की ढ़ाॄंखल तो टूटी और वह होश की दुनिया में वापस आ गई वरना तनाव में वह इन्ड़ाीं विचारों में खोई रहती और उसी आवस्था में सडक पार करने का प्रयत्न करती औऱ किसी दुर्घटना का शिकार हो जाती ।
उसने चारों ओर चौकन्ना होकर देखा सडक की ओर गाडियाँ इतनी दूर थी कि वह आसानी से सड़क पार कर सकती थी । सिग्नल तक रूकने का आर्थ था स्वयं को और दो चार मिनट लेट करना । इस विचार के मस्तिष्‍क में आते ही उसने सडक पार करने का निर्णय कर लिया और दौडती हुई सडक की दूसरी ओर पहुंच गई । दोनों ओरसे आने वाली गाडियां उसके कापकी समीप हो गई थी । जरा सी देरी या सुस्‍ती दुर्घटना का कारण बन सकती थी । परंतु इसके लिए उसने अपने आपको पूरी तरह तैयार कर लिया था कोई दुर्घटना हो इस बात का पूरा ध्यान रखा था । सडक पार करके उसने उस तंग सी गली में प्रवेश किया जिसे पार करने के बाद रेलवे स्टेशन की सीम आरंभा होती थी । गली में कदम रखते ही उसके दिल की घडकने तेज हो गई, सांसे फूलने लगीं और मथे पर पसीीने की बूंदे उभर आई ।
उसने हाथ के रूमल से मथे पर आई पसीने की बूंदे सापक कीं और फूली हुई सांसों पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न करने लगी । परंतु उसे पता था ना तो वह फूली हुई सांसों पर नियंत्रण पा सकेगी ना दिल के धडकने की गाति सामन्य कर सकेगी ।
मस्तिष्‍क में क्राोटा का विचार जो आ गया था । उसे पूरा विश्वास था गली के बीच उस पान की दुकान के पास वह कुर्साी लगाकर बैठा होगा उसे आता देक्रा भाद्दे आंदाज मे वाक़्य उछाल गा । क्राोटा की यह दिनचर्या थी । सुबह शाम वह उसी जगह उसकी राह देक्राता था । उसे पता था सवेरे वह कब आफिस जाती है और शाम को कब आफिस से घर लौटती है । उसके आने जाने का और रेलवे स्टेशन से घर के लिए आने का दूसरा कोई रास्ता नहीं था ।
एक और रास्ता है परंतु वह इतना लंबा रास्ता है कि उस रास्ते से जाने की कोई कल्‍पना भी नहीं कर सकता है । इसालिए क्राोटा उसी रास्ते पर बैठा उसकी राह देक्राता रहता है और उसे देक्राते ही कोई भाद्दा सा वाक़्य हवा में उछालता है ‘‘हाय डार्लींग ! बहुत अच्‍छी लग रही हो, यह आफिस, नौकरी वोकरी छोडो मुझे क्राुश किया करो..... हर महीने इतने पैसे दिया करूंगा जो नौकरी से तीनचार महिनों मे भी नहीं मिलते ड़ोंगे । आओ आज किसी होटल में चलते है आज शेरेटान होटल में पहल ही से अपना एक कमरा बुक है । नौकरी करते हुए जिंदगी भर शेरेटान होटल का दरवाजा भी नहीं देख पाओगी । आज हमरे साथ उसमें दिन गुजार कर देख ले ।’’
खोटा के हर वाक़्य के साथ उसे अनुभव होता एक भाल आकर उसके मन में चुभा गया है । दिल की धडकनें तेज हो जाती थीं और आंखो के सामने आंधकार सा छाने लगता था । तेज चलने के प्रयत्न में कदम लडखडाने लगते थे परंतु वह पूरी शाएिक़्त लगाकर तेज तेज चलने का प्रयत्न करते खोटा की आखों से ओझल हो जाने का प्रयत्न करती थी ।
खोटा उस क्षेत्र का मना हुआ गुंडा था उसे क्षेत्र का बच्चा बच्चा उससे पारिचित था शराब, जुए, वेश्याओं के आड्डे चलना, हपक़्ता वसूली, सुपारी, आगवा, हत्या, मरपीट इत्या. हर तरह के काम वह करता था । इस प्रकार के कामें में ऐसा कोई काम नहीं था जो वह ना करता था ।
जो चाहता था कर जाता था । कभी पुलिस की गिरपक़्त में नहीं आता था । यदि किसी ममले में फंस भी गया तो उसकी पहुंच, प्रभाव के कारण पुलिस को उसे दो दिनों मे ही छोडना पडता था ।
उस खोटा का दिल उस पर आ गया था । उस पर ! उस मया महात्रे पर, एक छोटे से निजी आफिस में छोटा सा काम करने वाली, एक बच्चे की मं पर ।
पहले तो खोटा उसे सिर्फ घूरा करता था । फिर जब उसे उसके आने जाने का समय और रास्ता मलूम हो गया तो वह प्राति दिन उसे उस रास्ते पर मिलने लगा । रोज उसे देखकर मुस्काता और उस पर गंदे वाक़्य कसता । खोटा की इन हरकतों से वह आतंकित सी हो गई थी । उसे यह आनुमन तो हो गया था खोटा के मन में क़्या है और उसे पूरा विश्वास था जो खोटा के मन में है खोटा उसे एक दिन जरूर पूरा करेगा ।
इस कल्‍पना से ही वह कांप उठती थी । यदि खोटा ने अपने मन की बात पूरी कर डाली, या पूरी करने का प्रयत्न किया तो ? इस कल्‍पना से ही उसकी जान निकल जाती थी ।
‘‘नहीं नहीं ऐसा नहीं हो सकता.... यदि खोटा मे मेरे साथ ऐसा कुछ किया तो मैं किसी को मुंह दिखाने के योग्य नहीं रहूंगी ....’’
उसे इस बात का पता था वह इतनी सुंदर है कि खोटा जैसे लेग उसे देखकर बहक सकते है । दूसरे हजार लेग उसे देखकर ऐसा कोई विचार अपने मन में लते तो उसे कोई परवाह नहीं होती क़्योंकि उसे विश्वास था वे कभी भी अपने उस ऐसे वैसे विचार को पूरा करने का साहस नहीं कर सकते थे ।
परंतु खोटा ! हे भागवान ! जो सोच ले दुनिया की कोई भी शाएिक़्त उसे अपने सोचे हुए काम से रोकने का प्रयत्न नहीं कर सकती थी । वह आते जाते खोटा की कल्‍पना से आतंकित रहती थी और उस दिन तो खोटा ने सारी सीमए तोड डाली थी । ना केवल उसके रास्ता रोक कर खडा हो गया था बालिक उसकी कलई भी पकड ली थी ।
‘‘बहुत आकडती हो, अपने आपको क़्या समझती हो ? तुम्‍हें पता नहीं तुमहारा पाल खोटा से पडा है । ऐसी आकड निकालूंगा कि जिंदगी भर याद रखोगी । सारी आकड भूल जाओगी ।’’
‘‘छोडो मुझे’’ उसकी आखों में भाय से आंसू आ गए और वह खोटा के हाथों से अपनी कलई छुडाने का प्रयत्न करने लगी । परंतु वह किसी शेर के चंगुल में फंसी हिरनी सी स्वयं को अनुभव कर रही थी ।
खोटा भायानक आंदाज में हंस रहा था और वह उसके हाथों से अपनी कलई छुडाने का प्रयत्न करती रही ।
इस दृश्य को देखकर एक दो रास्ता चलने वाले राही भी रूक गए । परंतु खोटा पर नजर पडते ही वे तेजी से आगे बढ गए ।
दानवी हंसी हंसता हुआ खोटा, उसकी विवशता से आनंदित हो रहा था । फिर हंसते हुए उसने धीरे से उसका हाथ छोड दिया ।
वह रोती हुई आगे बढ गई ।
खोटा का दानवी आट्टाहास उसकी पीछा करता रहा । वह रोती हुई स्टेशन आई और लेकल ट्रेन में बैफ़्कर सिसकती रही ।
उसे रोता देखकर आसपास के यात्री उसे आश्चर्य से देख रहे थे ।
आफिस पहुंचने तक रो रोकर उसकी आंखे सूूझ गई थी । उसमे आया पारिवर्तन आफिस वालों से छिप ना सका ।
उसे आफिस की सड़ेलियों ने घेर लिया
‘‘क़्या बात है मया ? यह तुमहारा चेहरा क़्यों सूझा हुआ है ? आंखे क़्यों लल है ?’’
उसने कोई उत्तर नहीं दिया और उनसे लिपटकर दहाडे मर मरकर रोने लगी ।
वह सब भी घबरा गई और उसे सांत्वना देते हुए चुप कराने का प्रयत्न करने लगी । बडी मुश्किल से उसके आंसू रूके और उसने पूरी कहानी उन्‍हे सुना दी ।
इससे पूर्व भी वह कई बार उन्‍हे खोटा की हरकतों के बारे में बता चुकी थी । परंतु उन्‍हों इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया था ।
‘‘नौकरी करने वाली स्त्रियों के साथ तो यह सब होता ही रहता है ! मेरा स्वयं एक प्रेमी है जो अंधेरी से चर्नाी रोड तक मेरा पीछा करता है ।’’
‘‘मेरे भी एक आशिक साहब है, सवेरे शाम मेरे मेहलले के नुक़्कड पर मेरा इंतेजार करते रहते है ।’’
‘‘और मेरे आशिक साहब तो आफिस के गिर्द मंडलते रहते है.. आओं बताती हूं सडक पर खडे टिकाटिकती लगाए देख रहे ड़ोंगे ’’
‘‘आगर खोटा तुम पर आशिक हो गया है तो यह, यह कोई चिन्ता की बात नहीं है, तुम चीज ही ऐसी हो कि तुम्‍हारे तो सौ दो सौ प्रेमी हो सकते है।’’
उनकी बातें सुनकर वह झूंझल जाती ।
‘‘तुम लेगों को मजाक सूझा है और मेरी जान पर बनी है । खोटा एक गुंडा है, बदमश है । वह ऐसा सबुकछ कर सकता है जिसकी कल्‍पना भी तुम्‍हारे प्रेमी लेग कर नहीं सकते है ।’’
परंतु उस दिन की खोटा की यह हरकत सुनकर सब सन्नाटे मे आ गई थी ।
‘‘क़्या तुमने इस बारे में अपने पाति को बताया है ?’’
‘‘नहीं आजतक कुछ नहीं बताया है । सोचती थी कोई हंगाम ना खडा हो जाए ।’’
‘‘तो अब पहली फुर्रसत में उसे सबुकछ बता दो ।’’
उस शाम वह नित्य के रास्ते से नहीं, लांबे रास्ते से घर गई और विनोद को सबुकछ बता दिया कि खोटा इतने दिनों से उसके साथ क़्या कर रहा था और आज उसने उसके साथ क़्या हरकत की ।
उसकी बातें सुनकर विनोद का चेहरा तन गया ।
‘‘ठीक है ! फिलहाल तो तुम एक दो दिन आफिस मत जाओ । उसके बाद सोचेंगे क़्या करना है ।’’
उसके बाद वह तीन दिन आफिस नहीं गई ।
एक दिन वह बालकनी में खडी थी आचानक उसकी नजर नीचे गई और उसका दिल धक से रह गया । खोटा नीचे खडा उसकी बालकनी को घूर रहा था । उससे नजर मिलते ही वह दानवी आंदाज में मुस्काने लगा और वह तेजी से भीतर आ गई ।
रात विनोद घर आया तो उसने आज की घटना बताई उस घटना को सुनकर विनोद ने अपने होठ फ्रोंच लिए । दूसरे दिने आफिस जाना बहुत जरूरी था। इतने दिनों तक वह सूचना दिए बिना आफिस से गैर हाजिर नहीं रह सकती थी ।
‘‘आज मैं तुमको स्टेशन तक छोडने आऊंगा ।’’ विनोद ने कहा तो उसकी हिममत बंधी ।
विनोद उसे स्टेशन तक छोडने आया । जब वह गली से गुजरे तो पान स्टाल के पास खोटा मौजूद था ।
‘‘क़्यों जाने मन ! आज बाडी गार्ड साथ लई हो, तुम्‍हें अच्‍छी तरह मलूम है कि इस तरह के सौ बाडी गार्ड मेरा कुछ नहीं बिगाड सकते ।’’
पीछे से आवाज आई तो उस आवाज को सुनकर क्रोधमें विनोद मुडा परंतु उसने उसे थाम लिया ।
‘‘नहीं विनोद, यह गुंडो से उलझने का समय नहीं है’’ और वह विनोद को लगभाग खेंचती स्टेशन की ओर बढ गई ।
फिर शाम वापसी के लिए उसने लांबा रास्ता अपनाया परंतु उसकी कालेनी के गेट के पास पहुंचते ही उसका मन धक से रह गया ।
खोटा गेट पर उसकी राह देख रहा था ।
‘‘मुझे आनुमन था कि तुम वापस उस रास्ते से नहीं आओगी । इसलिए तुमहारी कालेनी के गेटपर तुम्‍हें सलाम करने आया हूं । काश तुम मुझसे पकरार हासिल कर सको ।’’
यह कहता हुए खोटा उसे सलाम करता आगे बढ गया ।
रात विनोद को उसने सारी कहानी सुनाई तो विनोद बोल
‘‘कल यदि खोटा ने तुम्‍हें छेडा तो हम उसके विरूद्ध पुलिस में शिकायत करेंगे ।’’
दूसरे दिन विनोद उसे छोडने के लिए आया तो खोटा से फिर आमना सामना हो गया । खोटा की गंदी बाते विनोद सहन नहीं कर सका और उससे उलझ गया ।
विनोद ने एक मुक़्का खोटा को मरा, उत्तर में खोटना ने विनोद के मुंह पर ऐसा वार किया कि उसके मुंह से खून बहने लगा ।
‘‘बाबू । खोटा से आच्छे आच्छे तीस मरखा नहीं जीत सके तो तुमहारी हैसीयत ही क़्या है ।’’
घायल विनोद ने आफिस जाने के बजाए पुलिस स्टेशन जाकर खोटा के विरूद्ध शिकायत करना जरूरी समझा ।
थाना प्रमुख ने सारी बातें सुनकर कहा
‘‘ठीक है हम आपकी शिकायत लिख लेते है, परंतु हम खोटा के विरूद्ध ना तो कोई सख्त कार्यवाही कर पाएंगे और ना कोई मजबूत केस बना पाएंगे । क़्योंकि कुछ घंटो में खोटा छूट जाएगा और संभाव है छूटने के बाद खोटा तुमसे इस बात का बदल भी ले । वैसे आप डारिए नहीं हम खोटा को उसके किए की सजा जरूर देंगे ।’’ पुलिस स्टेशन से भी उन्‍हे निराशा ही मिली ।
उस दिन दोनों आफिस नहीं गए ।
तनाव में बिना एक दूसरे से बात किए घर में ही टहलते रहें ।
शाम को उसने पुलिस स्टेशन पकोन लगाकर अपनी शिकायत पर की जानेवाली कार्यवाही के बारे में पूछा
‘‘मिस्टर विनोद, थाना प्रमुख ने कहा, आपकी शिकायत पर हमने खोटा को स्टेशन बुलकर ताकीत दी है यदि उसने दोबारा आपकी पत्‍नी को छेडा, आपसे उलझने की कोशिश की तो उसे आंदर डाल देंगे ।’’
दूसरे दिन दोनों साथ आफिस जाने के लिए निकले, उस स्थान पर फिर खोटा से सामना हो गया जहा नित्य होता था ।
‘‘वाह बाबू वा ! तेरी तो बड़ूत पहुंच है । खोटा से भी ज्यादा, तेरी एक शिकायत पर पुलिस ने खोटा को बुलकर ताकीद की, और सिर्फ ताकीद की है ना, अब की बार खोटा ऐसा कुछ करेगा कि पुलिस को तुमहारी शिकायत पर खोटा के विरूद्ध कार्यवाही करनी पडेगी ...’’
‘‘खोटा हम शरीपक लेग है । हमरी इज्जत हमें अपनी जान से ज्यादा प्यारी है और उस इज्जत की रश के लिए हम अपनी प्राण दे भी सकते है ! इसीलिए भालई इसी मे है कि तुम हम शरीपक लेगों को परेशान मत करो । तुम्‍हारे लिए और भी हजारों औरते दुनिया में है । तुम कीमत आदा करके मन चाही सभी प्राप्त कर सकते हो, फिर क़्यों मेरी पत्‍नी के पीछी पडे हो ?’’ विनोद बोल ।
‘‘मुश्किल यही है बाबू खोटा का दिल जिस पर आया है वह उसे पैसों के बल पर नहीं मिल सकती, उसे उसकी शाएिक़्त के बल पर ही मिल सकती है’’
‘‘कमीने मेरी पत्‍नी की ओर आंख भी उठाई तो मैं तेरी जान ले
लूंगा...’’ यह कहते हुए विनोद खोटा पर झपटा और उस पर बे तहाशा घूसें बरसाने लगा ।
हक़्का बक़्का खोटा विनोद के वार से स्वयं को बचाने का प्रयत्न करने लगा । आचानक रास्ता चलते कुछ लेगों ने विनोद को पकड लिया, कुछ ने खोटा को और वह किसी तरह विनोद को आफिस जाने के बजाए घर ले जाने में सपकल हो गई । खोटा से विनोद के टकराव ने उसे आतंकित कर दिया था ।
उसे विश्वास था कि खोटा इस अपमान का बदल जरूर लेगा और किस तरह लेगा इस कल्‍पना से ही वह कांप जाती थी ।
वह विनोद को बहलती रही ।
‘‘खोटा को तुमने ऐसा सबक सिखाया है कि आज के बाद तो ना वह तुमसे उलझेगा ना मेरी ओर आंख उठाने का साहस करेगा । तुमने जो कदम उफ़्या वह बहुत सही था ।’’
यू वह विनोद को बहल रही थी परंतु भीतर ही भीतर कांप रही थी कि खोटा जरूर इसका बदल लेगा ।
आगर उसने विनोद को कुछ किया तो ?
नहीं नहीं ! विनोद को कुछ नहीं होना चाहिए ! विनोद मेरा जीवन है। यदि उसके शरीर पर एक खराश भी आई तो मैं जिंदा नहीं रहूंगी ।
उसे ऐसा अनुभव हो रहा था उसके कारण यह युद्ध छिडा है । इस युद्ध का आंत दोनो पक्षों का आंत है इसके सिवा कोई पारिणाम निकल भी नहीं सकता।
भालई इसी में है कि दोनो पक्षों के बीच संधी करा दी जाए, ताकि युद्ध कि स्थिति ही पैदा ना हो ।
परंतु यह संधी किस प्रकार संभाव थी । खोटा बदले की आग में झुलस रहा होगा और जब तक बदले की यह आग नहीं बुझेगी उसे चैन नहीं आएगा ।
उसे खोटा एक आजगर अनुभव हो रहा था । जो उसके सामने खडा उसे निगलने के लिए अपनी जीप बार बार लपलपाता और पुंकपककारता । उस आजगर से उसे अपनी रश करनी थी ।
दूसरे दिन वह आफिस जाने लगी तो पान पर खोटा का सामना हो गया वह क्रोधभारी द़ष्टि से उसे घूर रहा था । उसने मुस्काकर देखा और आगे बढ गई ।
उसे मुस्काता देखकर खोटा आश्चर्य से उसे आंखें फाड फाडकर देखता रहा ।
एक दिन फिर वह आफिस जाने लगी तो मुस्काता हुआ खोटा उसका रास्ता रोककर खडा हो गया ।
उसकी आखों में एक चमक थी ।
‘‘मेरा रास्ता छोड दो’’ वह क्रोधभारी द़ष्टिसे खोटा को घूरती बोली ।
‘‘जानम ! अब तो हमरे तुम्‍हारे रास्ते एक ही है’’ कहते हुए खोटा ने उसका हाथ पकड लिया ।
उसने एक झटके से अपना हाथ छुडा लिया और समीप खडे नारियल पानी बेचने वाले की गाडी से नारियल छीलने की तेज दरांती उफ़्कर खोटा की ओर शेरनी की तरह लपकी.....
खोटा के चेहरे पर हवाईयां उडने लगीं आचानक वह सिर पर पैर रखकर भागा । वह उसके पीछे दरांती लिए दौड रही थी । फूलती हुई सांसो के साथ खोटा अपनी गाति बढाता जा रहा था ।
जब खोटा उसकी पहुंच से बहुत दूर चल गया तो वह खडी होकर अपनी फूली हुई सांसो पर नियंत्रण पाने का प्रयत्न करने लगी और फिर दरांती को एक ओर पेंकककर आफिस चल दी .....। द द
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

Hindi Short Story Rehai By M.Mubin

कहानी रिहाई लेखक एम मुबीन

दोनों चुपचाप पुलिस स्टेशन के कोने में रखी एक बँच पर बैठे साहब के आने की राह देख रहे थे -
उन्‍हे वहां उस स्थिति में बैठे साहब की प्रतीश करते तीन घंटे बीत गए थे । दोनों में इतना भी साहस नहीं था कि आपसमें ही बातें करके समय काटने का प्रयत्न करते ।
जब भी वे एक दूसरे को देखतें, दोनों की नजरें आपस में मिलतीं तो वे एक दूसरे को अपने आपराधी अनुभव करने लगते ।
दोनों में से दोष किसका था अभी तक वे दोनों स्वयं यह तय नहीं कर पाए थे । कभी उन्‍हे अनुभव होता जैसे वे सचमुच आपराधी है कभी अनुभव होता जैसे उन्‍हे एक ऐसे आपराध की सजा दी जा रही है जो उन्‍हों कभी नहीं किया है ।
समय बीताने के लिए वे भीतर चल रही गाति विधियों का निरशण करने लगे । उनके लिए वह स्थान बिलकुल आपारिचित सा था । उन्‍हे याद नहीं आ रहा था जीवन में कभी उन्‍हे किसी काम से भी उस, या उस जैसे किसी स्थान पर जाना पहा हो ।
या यदि उन्‍हे कभी उस प्रकार के किसी स्थान पर जाना पडा भी तो वह स्थान कम से कम इस स्थान के समन तो नहीं था ।
सामने लकआप था ।
पांच छ लोहे की सलखों वाले दरवाजे और उन दरवाजों के पीछे बने छोटे छोटे कमरे । हर कमरे में आठा दस व्‍यक्ति बंद थे । कोई सो रहा था, तो कोई उंघ रहा था, कोई आपस में बातें कर रहा था, तो कोई सलखों के पीछे से झांककर कभी उन्‍हे, तो कभी पुलिस स्टेशन में आने वाले सिपाहियों को देख कर व्यंग भारी आंदाज से मुस्का रहा था ।
उनमें से कुछ के चेहरे इतने भायानक और #ूकर थे कि उन्‍हे देखकर ही आनुमन हो जाता था उनका संबंध आपराधियों से है या वे स्वंय आपराधी है । परंतु कुछ चेहरे बिलकुल उनसे मिलते जुलते थे ।
आबोध, भाोले-भाले चेहरे, वे सलखों के पीछे से झांककर उन्‍हे बार बार देख रहे थे । जैसे उनके भीतर कुतुहल जागा हो ।
‘‘तुम लेग शायद हमरे भाई बंध हो? तुम लेग यहां कैसे आ फंसे?’’
वे जब उन चेहरों को देखते थे तो मन में एक ही विचार आता था कि चेहरे से तो ये भाोले-भाले, आबोध, सुशिक़ित लगते है ये कैसे इस नरक में आ फंसे ?
बाहर दरवाजे पर दो बंदूकधारी पहरा दे रहे थे । लकआप के पास भी दो सिपाही बंदूक लिए खडे थे ।
कोने वाली मेज पर एक वर्दीवाल निरंतर कुछ लिखे जा रहा था । कभी कोई सिपाही आकर उसके सामने वाले टेबल पर बैठा जाता तो वह अपना काम छोहकर उससे बातें करने लगता, फिर उस सिपाही के जाने के बाद अपने काम में व्यस्त हो जाता । उसके बाजू में एक खाली टेबल था उस खाली टेबल पर दोनों के ब्रिपककेस रखे हुए थे । उनके साथ और भी बहुत से लेग रेलवे स्टेशन से पकहकर लए गए थे उनका सामन भी उसी टेबल पर रखा हुआ था ।
वे लेग भी उनके साथ बैचं पर बैठे हुए थे । परंतु किसी में इतना साहस नहीं था कि एक दूसरे से बातें करें, यदि व आपसमें बाते करने का प्रयत्न करते तो समीप खडा सिपाही गरज उठता
‘‘ऐ ! चुपहो जाओ.... आवाज मत निकाले.... शोर किया तो सबको लकआप में डाल दूंगा ।’’
उसके बाद उन लेगों मे काना फूसी में भी एक दूसरे से बात करने का साहस नहीं किया था । वे सब एक दूसरे के लिए आपारिचित थे । संभाव है पारिचित भी ड़ोंगे जिस प्रकार वह और आशोक एक दूसरे के पारिचित थे । ना केवल पारिचित बालिक आच्छे दोस्त भी थे । एक ही आफिस में बरसों से वे एक साथ काम कर रह थे और एक साथ उस संकट में भी फंसे थे ।
आज जब वे आफिस से निकले तो दोनों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि दोनों इस मुसीबत में फंस जाएंगे ।
आफिस से निकलते हुए आशोक ने कहा था -
‘‘मेरे साथ ज़रा मर्एोकट तक चलेगे ? एख छुरी का सेट खरीदना है, पत्‍नी कई दिनों से लने के लिए कह रही है परंतु आफिस के कामें के कारण मर्एोकट जाने का समय ही नहीं मिलता ।’’
‘‘चले’’ उसने घडी देखते हुए कहा । ‘‘मुझे सात बजे की तेज लेकल ट्रेन पकडनी है और अभी छ ही बजे है । इतनी देर में यह काम निपटाया जा सकता है ।’’
और वह आशोक के साथ मर्एोकट चल आया । एक दुकान से उन्‍हों छुरियों का सेट खरीदा । उस सेट में विफ्रिन्न आकार की आठा दस छुरियां थीं उनकी धार बडी तेज थी और दुकानदार का दावा था रोज उपयोग करने के बाद भी दो वर्षो तक धार कायम रहेगी क़्योंकि ये स्टेनलेस स्टाील की बनी है । कीमत भी वाजिब थी । कीमत आदा करके सेट आशोक ने अपनी आटेची में रखा और बातें करते हुए वे रेलवे स्टेशन की ओर चल दिए ।
स्टेशन पहुंचे तो सात बजने में बीस मिनट शेष थे । दोनों की इच्छित लेकल ट्रेन के आने में अभी बीस मिनट बाकी थे ।
फास्ट ट्रेन के प्लेट फार्म पर आधिक भीड नहीं थी । धीमी गाडियों वाले प्लेट फार्म पर ज्यादा भीड थी । लेग 20 मिनट तक किसी गाडी की राह देखने के बजाए धीमी गाडियों से जाना पसंद कर रहे थे ! आचानक वे चौंक पहे ।
प्लेट फार्म पर आचानक पुलिस की पूरी पकोर्स उमड पडी और उन्‍हों प्लेट फार्म पर मौजूद हर व्‍यक्ति को अपने स्थान पर जाम कर दिया । दो-दो तीन-तीन सिपाही आठा-आठा दस-दस लेगों को अपने घेरे में ले लेते और उनसे पूछताछ करके उनके सामन आटेचियों की तलशी लेने लगते कोई संशित या इच्छित वस्तु ना मिलने पर उन्‍हे जाने देते, या उन्‍हे कोई संशित या इच्छित वस्तु मिल जाती तो दो सिपाही उस व्‍यक्ति को जिसके पास से वह चीज मिली हो पकडकर प्लेट फार्म के बाहर खडी जीप में बिठा आते ।
उन्‍हे भी तीन सिपाहियों ने घेर लिया ।
‘‘क़्या बात है ? हवलदार साहब’’ उसने उससे पूछा ।
‘‘यह तलशियां किस लिए ली जा रही है ।’’
‘‘हमें पता चल है कि कुछ आतंकवादी इस समय इस प्लेट फार्म से हाथियार ले जा रहे है उन्‍हे गिरपक़्तार करने के लिए यह कार्यवाही चल रही है’’ एक सिपाही ने उत्तर दिया ।
वे कुल आठा दस लेग थे जिन्‍हे उन सिपाहियों ने घेर रखा था । उनमें से चार की तलशी हो चुकी थी उन्‍हे छोड दिया गया था ।
अब आशोक की बारी थी ।
शरीर की तलशी लेने के बाद आशोक की ब्राीपककेस खोलने का आदेश दिया गया ।
ब्राीपककेस खोलते ही एक दो चीजों को उलट पलट करने के बाद जैसे ही उनकी नजर छुरियों के सेट पर पडी वे उछल पडे ।
‘‘बाप रे इतनी सारी छुरियां साहब हाथियार मिले है ।’’
एक ने आवाज देकर थोडी दूर खडे इन्सपेक़्टर को बुलया ।
‘‘हवलदार साहब यह हाथियार नहीं सब्जाी तरकारी काटने वाली छुरियों का सेट है’’ आशोक ने घबराए स्वर में समझाने का प्रयत्न किया ।
‘‘हा हवलदार साहब यह घरेलू उपयोग की छुरियों का सेट है हमने इसे अभी बाजार से खरीदा है’’ उसने भी आशोक की स फाई पेश करने की कोशिश की ।
‘‘तो तू भी इसके साथ है’’ कहते तुरंत एक सिपाही ने उसे दबोच लिया दो सिपाही पहले ही आशोक को दबोच चुके थे ।
‘‘हम कहते है हवलदार साहब यह हाथियार नहीं घर मे काम
आने वाली छुरियों का सेट है’’ आशोक ने एक बार फिर उन्‍हे समझाने
की कोशिश की।
‘‘चुप बैठा’’ एक जोरदार डंडा उसके सिर पर पडा ।
‘‘हवलदार साहब आप मर क़्यों रहे है’’ आशोक ने विरोध किया ।
‘‘मरें नहीं तो क़्या तेरी पूजा करे हाथियार साथ लिए फिरता है दंगा पकसाद कराने का इरादा है क़्या? जरूर तेरा संबंध उन आतंकवादियों से है ।’’
एक सिपाही बोल और दो सिपाही आशोक पर डंडे बरसाने लगे ।
उसने आशोक को बचाने का प्रयत्न किया तो उसपर भी डंडे पडने लगे।
उसने इसी में भालई समझी कि वह चुप रहें
उस पर भी दो चार डंडे पडे फिर हाथ रोक दिया गया । परंतु आशोकका बुरा हाल था वह जैसे ही कुछ कहने के लिए मुंह खोलता था उस पर डंडे बरसने लगते थे विवश उसे चुप होना पडा ।
‘‘क़्या बात है !’’ इस बीच वह इन्सपेक़्टर वहां पहुंच गया जिसे उन्‍हों आवाज दी थी ।’’
‘‘साहब इसके पास से हाथियार मिले है’’
‘‘इसे तुरंत थाने ले जाओं !’’ इन्सपेक़्टर ने आदेश दिया और दूसरी और चल गया ।
चार सिपाहियों ने उन्‍हे पकडा और घसीटते हुए प्लेट फार्म के बाहर ले जाने लगे । बाहर एक पुलिस जीप खडी थी ।
उस जीप में पहले से ही दो चार आदमी बैठे थे । उन सबको चार सिपाहियों ने अपने सुरक्षा कवच में ले रखा था ।
‘‘आप लेगों को किस आरोप में गिरपक़्तार किया गया है’’ जैसे ही उन लेगों में से एक आदमी ने पूछने का प्रयत्न किया एक सिपाही का पकौलदी मुक़्का उसके मुंह पर पडा और मुंह से खून बहने लगा ।
‘‘चुपचाप बैठा रहे ! नहीं तो मुंह तोड दूंगा’’ सिपाही गुरार्या ।
वह आदमी अपना मुंह पकड के बैठा गया और जेब से रूमल निकालकर मुंह से बहते खून को सापक करने लगा ।
पुलिस स्टेशन लकर उन्‍हे उस बँच पर बिठा दिया गया और उनका सामन सामने वाले टेबल पर रख दिया गया, जो शायद इन्सपेक़्टर का था ।
वे जब पुलिस स्टेशन पहुंचे तो निरंतर लिखने वाले ने सिपाहियों से पूछा
‘‘ये कौन लेग है ? इन्‍हे कहा से ल रहे हो ? ’’
‘‘रेलवे स्टेशन पर छापे में पकडे गए है इनके पास से संशित चीजें मिली है यह हाथियार बरामद हुए है ’’
‘‘फिर इन्‍हे यहां क़्यों बिठा रहे हो ? लकआप में डाल दो ।’’
‘‘साहब ने कहा है उन्‍हे बाहर बिफ़्कर रखना वे आकर उनके बारे में निर्णय लोंगे’’
बँच पर बिफ़्ने से पूर्व उनकी अच्‍छी तरह से तलशी ली गई कोई संशित वस्तु नहीं मिली थी यही बहुत बडी बात थी ।
उनके पुलिस स्टेशन पहुंचने के थोडी देर बाद दूसरा जत्था पुलिस स्फ़् शन पहुंचा था । वे भी आठा दस लेग थे शायद उन्‍हे किसी दूसरे इन्सपेक़्टर ने पकडा था उन्‍हे दूसरे कमरे में बिफ़्या गया था ।
इस प्रकार वहां कितने लेग लए गए थे । आनुमन लगाना काफ़्नि था क़्योंकि वे उसी कमरे की गातिविधियां देख पा रहे थे जिस में वे कैद थे ।
नए सिपाही आते तो उन पर एक उंचटती द़ष्टि डालकर दूसरे सिपाहियों से उनके बारे में पूछ लेते
‘‘ये कहा पकडे गए है ? वेश्याल से ब्लाू फिलम देखते हुए या फिर जुए के आड्डे से ।’’
‘‘हाथियारों की खोज में आज रेलवे स्टेशन पर छापा मरा था ये सब वहीं पकडे गए ।’’
‘‘क़्या कुछ मिल ।’’
‘‘इच्छित तो कुछ भी नहीं मिल सका तलश जारी है । साहब अभीतक नहीं आए है आए तो पता चलेगा । खबर सही थी या गलत और छापे से कुछ प्राप्त भी हुआ है या नहीं ।’’
जैसे जैसे समय बीत रहा था उसके दिल की धडकने बढती जा रही थी, आशोक की स्थिति और आधिक खराब थी उसके चेहरे पर उसके मन के भाव उभर रहे थे । हर शण ऐसा अनुभव होता था जैसे वह अभी चकरा कर गिर जाएगा उसे आनुमन था जिन बातों की कल्‍पना से वह डर रहा है उनके बारे में आशोक के भाय कुछ ज्यादा ही होगें उसे कम से कम इस बात का तो इत्मीनान था कि तलशी में उसके पास से कुछ नहीं निकल है इसलिए ना पुलिस उस पर कोई आरोप लगा सकती है और ना हाथ डाल सकती है परंतु मुसीबत यह थी वह आशोक के साथ गिरपक़्तार हुआ है । आशोक पर जो भी आरोप लगाया जाएगा उसे उस आरोप में बराबरी का साथी सिद्ध किया जाएगा ।
कभी कभी उसे क्रोधआ जाता ।
आखिर हमें किस आरोप में गिरपक़्तार किया गया है ? किस आरोप में हमरे साथ #ूकर आपराधियों सा अपमान जनक व्यवहांर किया जा रहा है ?
घंटो से हमें यहां बिफ़्कर रखा गया है हमरे पास से तो कोई आपात्तिजनक वस्तु भी बरामद नहीं हुई है और वह छुरियों का सेट वह तो घरेलू उपयोग की वस्तु है उन्‍हे अपने पास रखना, या कहीं ले जाना आपराध है ? आशोक उन छारियों से कोई हत्या, मरपीट, दंगा, पकसाद करना नहीं चाहता था वह तो उन्‍हे अपने घर, घरके इस्तेमल के लिए ले जा रहा था ।
परंतु वह किससे ये बातें कहें, किसके सामने अपने निरपराध होने की स फाई पेश करें । यहां तो मुंह से आवाज भी निकलती है तो कभी उत्तर में गालियां मिलती है तो कभी घूसे । इस संकट से किस प्रकार मुएिक़्त पाए दोनों अपनी अपनी तौर पर सोच रहे थे ।
जब उन सोचों से घबरा जाते तो धीरे धीरे एक दूसरे से कानों में बातें करने लगते ।
‘‘आनवर अब क़्या होगा?’’
‘‘कुछ नहीं होगा आशोक तुम धैर्य रखो हमने कुछ नहीं किया है’’
‘‘फिर हमे यहां क़्यो बिफ़्कर रखा गया है हमरे साथ आदी मुजारिमें सा व्यवहांर क़्यों किया जा रहा है ?’’
‘‘यहां के तौर तरीके ऐसे ही है अभी तक तो हमरा केस किसी के सामने गया भी नहीं ।’’
‘‘मेरा साल स्थानिय विधायक का मित्र है उसे पकोन करके सारी बातें बता दूंगा वह हमें आकर इस नरक से निकाल ले जाएगा ।’’
‘‘पहली बात तो यह है ये लेग हमें पकोन करने ही नहीं देंगे थोडा धैर्य रखो । इन्सपेक़्टर के आने के बाद क़्या परिस्थितीयां सामने आती है उसके बाद इस विषय पर विचार करेंगे.....’’
‘‘इतनी देर हो गई है घर ना पहुंचने पर पत्‍नी चिन्तित होगी...’’
‘‘मेरी भी यही स्थिती है । एक दो घंटे लेट हो जाता हूं तो वह घबरा जाती है । इन लेगों का कोई भारोसा नहीं कुछ ना मिलने पर भी किसी भी आरोप में फंसा देंगे ।’’
‘‘अरे सिर्फ पैसे खाने के लिए यह सारा नाटक रचा गया है’’ बाजू में बैठा एक आदमी बोल । ‘‘कडकी लगी होगी किसी आपराधी से हपक़्ता नहीं मिल होगा या उसने हपक़्ता देने से इन्कार किया होगा, उसके विरूद्ध तो कुछ कर नहीं सकते, उसकी भरपाई के लिए हम शरीपकों को पकडा गया है ।’’
‘‘तुम्‍हारे पास क़्या मिल? उसने पलटकर उस व्‍यक्ति से पूछा ।’’
‘‘तेजाब की बोतल’’ वह आदमी बोल । ‘‘उस तेजाब से मैं अपने बीमर बाप के कपडे धोता हूं जो कई महीनें से बिस्तर पर है उसके बीमरी के किटाणू मर जाए । उनसे किसी को हानि ना पहूंचे इसलिए डाक़्टर ने उसके कपडे इस ॠसिड से धोने के लिए कहा है । आज एसीड समप्त हो गया था मेडिकल स्टेर से एसीड खरीद कर घर जा रहा था, मुझे क़्या पता था उसके कारण इस संकट में फंस जाऊंगा । वरना घर के समीप की मेडिकल स्टोर से एसीड खरीद लेता।’’
‘‘ऐ क़्या खुसर पुसर चालू है’’ उनकी कानाफूसी सुनकर एक सिपाही दहाडा तो वे सहमकर चुप हो गए ।
मस्तिष्‍क में फिर आशंकाए सिर उठाने लगी । यदि आशोक पर कोई चार्ज लगाकर उसे गिरपक़्तार कर लिया गया तो वह भी बच नहीं पाएगा । उसे आशोक की सहायता करनेवाल उसका साथा करार दिया जाएगा । वही आरोप उस पर लगाना कौनसी बडी बात है । पुलिस उनपर आपराध मढकर आदालत में भेज देगी आदालत मे उन्‍हे स्वंय को निरपराध सिद्ध करना होगा और इस #िकया में कई वर्ष लग सकते है । सालों आदालत कचेरी के चक़्कर इस कल्‍पना से ही उसे झुरझुरी आ गई । फिर लेगों को क़्या जवाब देंगे । किस किसको अपने निर्दोष होने की कहानी सुनाएंगे । यदि पुलिस ने उनपर कोई आरोप लगाया तो मामला सिर्फ आदालत तक सीमित नहीं रहेगा पुलिस उनके बारे में बढा चढाकर उनके आपराधों की कहानी आखबारों में छपाएगी ।
आखबार वाले तो इस तरह की कहानियों की ताक में रहते है...
‘‘दो सपेकद पोशों के काले कारनामें’’
‘‘एक आफिस में काम करने वाले दो क़्लार्एक आतंकवादियों के साथी निकले ।’’
‘‘एक बदनाम गैंग से संबंध रखने वाले दो गुंडे गिरपक़्तार’’
‘‘दंगा करने के लिए हाथियार ले जाते दो गुंडे गिरपक़्तार’’
‘‘शहर के दो शरीपक नागारिक का संबंध एक आतंकवादी संघटना से निकल’’
इन बातों को सोच सोचकर वह अपना सिर पकड लेता था ।
जैसे जैसे समय बीत रहा था उसकी हालत खराब होती जा रही थी उसे उन विचारों से मुएिक़्त पाना काफ़्नि हो रहा था ।
रात ग्यारह बजे के समीप इन्सपेक़्टर आया । वह क्रोधमें भारा था ।
‘‘नालयक, पाजी, हरामी साले झूठी सूचनाएं देकर हमरा समय बर्बाद करते है । सूचना थी कि आतंकवादी रेलवे स्टेशन से हाथियार ले जा रहे है कहा है आतंकवादी....? कहा है हाथियार...?’’
‘‘चार घंटे रेलवे स्टेशन पर दिमग पकोडी करनी पडी .... रामू यह कौन लेग है?’’
‘‘साहब इन्‍हे रेलवे स्टेशन पर शक में गिरपक़्तार किया है ।’’
‘‘एक एक को मेरे पास भेजो ष ’’
एक एक आदमी इन्सपेक़्टर के पास जाने लगा और सिपाही उसे बताने लगा कि उसे किस लिए गिरपक़्तार किया गया है
‘‘इसके पास से तेजाब की बोतल मिली है’’
‘‘साहब वह तेजाब घातक नहीं था, उससे मैं अपने बीमर बाप के कपडे धोता हूं । वह मैंने एक मेडिकल स्टोर से खरीदा था । उसकी रसीद मेरे पास है जिस डाक़्टर ने यह लिख कर दिया है उसके लेटर भी मेरे पास है । यह किटाणू नाशक तेजाब है बर्फ के समन ठंडा’’ वह आदमी अपनी स फाई पेश करने लगा ।
‘‘जानते हो तेजाब लेकर लेकल ट्रेन में यात्रा करना आपराध है’’
‘‘मुझे पता है, परंतु इस तेजाब से आग नहीं लगती है’’
‘‘ज्यादा मुंह जोरी मत करो तुम्‍हारे पाससे तेजाब मिल है हम तुम्‍हें तेजाब लेकर लेकल ट्रेन में यात्रा करने के आरोप में गिरपक़्तार कर सकते है ।’’
‘‘अब मैं क़्या कहूं साहब’’ वह आदमी विवशता से इन्सपेक़्टर का चेहरा तकने लगा ।
‘‘ठीक है तुम जा सकते हो.... परंतु आइंदा तेजाब लेकर लेकल ट्रेन में यात्रा नहीं करना...’’
‘‘नहीं साहब अब ऐसी गलती दोबारा कभी नहीं होगी’’ कहता वह आदमी अपना सामन उफ़्कर तेजी से पुलिस स्टेशन के बाहर चल गया । अब आशोक की बारी थी ।
‘‘हम दोनों एक एंकपनी के वि#की विभाग में काम करते है ये हमरे कार्ड है... ’’ कहते आशोक ने अपना कार्ड दिखाया । ‘‘मैंने घर के उपयोग के लिए यह छुरियों का सेट खरीदा था और उन्‍हे लेकर घर जा रहा था आप स्वयं देख लिजिए ये घर के उपयोग होने वाली छुरियां है ।’’
‘‘साहब इनकी धार बहुत तेज है’’ सिपाही बीच में बोल उठा ।
इन्सपेक़्टर एक एक छुरी उफ़्कर उसकी धार परखने लगा ।
‘‘सचमुच इनकी धार बहुत तेज है एक ही वार से किसी की जान भी जा सकती है ।’’
‘‘इस बारे में मैं क़्या कह सकता हूं साहब’’ आशोक बोल । एंकपनी ने इतनी तेज धार बनाई है एंकपनी को इतनी तेज धारवाली छुरियां नहीं बनानी चाहिए ।’’
‘‘ठीक है तुम जा सकते हो’’ इन्सपेक़्टर आशोक से बोल और फिस उससे संबोधित हुए ।
‘‘तुम’’
‘‘साहब यह इसके साथ था’’
‘‘तुम भी जा सकते हो... लेकिन सुनो....’’
उसने आशोक को रोका ‘‘पूरे शहर में इस प्रकार की तलशियां चल रही है यहां से जाने के बाद संभाव है इन छुरियों के कारण तुम लेग कहीं और धर लिए जाओ’’
‘‘नहीं इन्सपेक़्टर साहब, अब मुझमें इन छुरियों को घर ले जाने की हिममत नहीं है मैं इसे यहीं छोड जाता हूं ...’’
आशोक की बात सुनकर सिपाही और इन्सपेक़्टर के होठों पर विजयी मुस्कान उभर आई । दोनों अपने अपने ब्राीपककेस उफ़्कर जब पुलिस स्टेशन के बाहर आए तो उन्‍हे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे उन्‍हे नरक से रिहाई का आदेश मिल गया है....। द द

अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
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Hindi Short Story Daldal Peh Tiki Chhat By M.Mubin

कहानी दलदल पर टिकी छत लेखक एम. मुबीन
तीन दिनों में ही पता चल गया कि उसे मगन भाई ने कमरा किराए पर नहीं दिया कमरा किराए पर देने के नाम पर फ़्ग लिया है ।
अब सोचता है तो स्वयं उसे आश्चर्य होता है । उससे इतनी बडी भूल किस तरह हो गई । बस कुछ देर के लिए वह उस बस्‍ती में आया मगन भाई ने उसे अपनी बंद चाल का कमरा खोलकर बताया । 10 बाय 12 का कमरा था । जिसके एक कोने में एक छोटा सा किचन टेबल बना हुआ था । उससे लगकर एक तंग सा बाथ रूम ! जिसे वहां की भाषा में मेरी कहा जाता था । कमरें में एक दरवाजा था जो तंग सी गली में खुलता था दो खिडाकियां थीं जिनके कारण हवा और प्रकाश का अच्‍छा प्रबंध था । पकर्श पर रपक लदी थी, दिवारों का पलस्तर जगह जगह से उखडा हुआ था । पलस्तर सिमेंट का था । छत पतरे की थी । गली के दोनों ओर कच्चे झोंपडों का सिलसिल था जो दूर तक पैकल हुआ था। बीच से एक गंदी नाली बह रही थी जिससे गंदा पानी उबलकर चारों ओर पैकल रहा था । जिसकी र्दुगंध से मस्तिष्‍क फटा जा रहा था । मगनभाई कि उस चाल में सात, आठा कमरे थे । उसके मस्तिष्‍क ने तुरंत उसे निर्णय लेने के लिए विवश कर दिया ।
उसे इस शहर में इतने कम दामें में इतना अच्‍छा कमरा किराए पर नहीं मिल सकता । इस शहर में इससे आच्छे कमरे की आशा रखना बेकार की बात थी और वह तुरंत कमरा किराए पर लेने के लिए तैयार हो गया ।
दूसरे दिन उसने पच्चाीस हजार रूपये डिपाजिट के रूप में आदा किए । मगन भाईने तुरंत किराए के करारनामें के कागजात हस्ताशर करके उसे दे दिए। बिजली और पानी का अपनी तौर पर प्रबंध करने के बाद उसे किराए के रूप में मगनभाई को तीनसौ रूपया महिना देने थे । किराए का करार केवल 11 महीनों का था परंतु मगनभाई ने वादा किया था वह 11 महीनों के बाद भी उससे कमरा खाली नहीं कराएगा । वह जबतक चाहे उस कमरे में रह सकता है । यदि वह कहीं और इससे आच्छे कमरे का प्रबंध कर लेता है तो मगनभाई उसे उसके डिपाजिट की राशि वापस कर देगा ।
उस शाम वह अपने मित्र के घर से अपना थोडा सा सामन लेकर अपने मित्र और उसके घर वालों को आलविदा कहकर अपने नए घर में आ गया ।
दो तीन घंटे तो कमरे की स फाई में लग गए और शेष एक घंटा सामन को कमरे में सजाने में ... !
कमरे में बिजली का प्रबंध था इसलिए सिर्फ बलब लगाना पडा ।
कमरी की स फाई से वह इतना थका गया था कि उस रात वह बिना खाए पिए ही सो गया ।
सवेरे नित्य के समन छ बजे आंख खुली तो वह स्वयं को ताजा अनुभव कर रहा था । पानी आया था घर के सामने एक सरकारी नल पर औरतों की भीड थी ।
‘‘पानी का प्रबंध करना चाहिए !’’ उसने सोचा । परंतु पानी भरने के लिए घर में कोई बर्तन नहीं था । चहलकदमी करते वह अपने घर से थोडी दूर आया तो उसे एक किराने की दुकान दिखाई दी । उस दुकान पर लटके पानी के केन देखकर उसकी बांछे खिल गई । पानी के केन खरीदकर वह नल पर आया और नंबर लगाकर कतारमें खहा हो गया ।
नल पर पानी भरती औरतें उसे विचित्र आंदाज से घूर कर आपसमें आखों से एक दूसरे को कुछ इशारे कर रही थीं ।
उसका नंबर आया तो उसने पानी का केन भारा और अपने घर आया।
स्नान करके उसने कपडे बदले । वह घर में नाश्ता नहीं बना पाया था नाश्ता बनाने के लिए उसके पास आवश्यक सामन नहीं था ।
किसी होटल में नाश्ता करने के बारे में सोचते हुए वह घर से चल दिया।
सोचा नाश्ता करने तक आफिस जाने का समय हो जाएगा उस दिन वह अपने आपको बडा प्रसन्न, चुस्त ओर तरो ताजा अनुभव कर रहा था ।
एक आभास बार बार उसके भीतर करवटें ले रहा था कि अब वह इस शहर में बेघर नहीं है अब इस शहर में उसका अपना घर भी है । उसकी अपनी छत भी है जिसके नीचे वह आराम कर सकता है ।
कल तक यह एहसास उसे कचोकता था इस शहर में उसके पास एक अच्‍छी नौकरी है परंतु उसके पास रहने के लिए एक घर, सिर छिपाने के लिए एक छत नहीं है । वह दूसरे की छत के नीचे शरण लिए हुए है । उस छत की शरण कभी भी उसके सिर से हट सकती है ।
उसे अपनी योग्यता के आधार पर उस शहर में नौकरी तो मिल गई थी, परंतु उसके सामने सबसे बडी समस्या सिर छिपाने की थी । उस शहर में ना तो कोई उसका रिश्तेदार था और ना ही कोई पारिचित ।
उसने नौकरी ज्वाईन तो करली परंतु आवास की समस्या उसके सामने किसी दानव के समन मुंह फाडकर खडी हो गई ।
कुछ दिनों के लिए उस समस्या का हल उसने एक होटल में किराए का कमरा लेकर ढूंढ लिया । परंतु कुछ ही दिनों में उसे अनुभव होने लगा उसे जितना वेतन मिलता है उस वेतन में ना तो वह उस होटल में रह सकता है और ना खा पी सकता है ।
उसने दूसरे सहारे की तलश शुरू की और उसे एक होस्टल में सिर छिपाने का स्थान मिल गया ।
दो चार महीने उसने होस्टल में निकाले परंतु एक दिन वह घोर संकट में फंस गया । एक दिन पुलिस ने होस्टल पर छापा मरा और होस्टल के सारे निवासियों को गिरपक़्तार कर लिया ।
होस्टल से पुलिस को मदक पदार्थ मिले थे । उस होस्टल में कुछ गुंडा तत्व मदक पदार्थो का कारोबार करते थे ।
बडी मुश्किल से वह स्वयं को पुलिस के चंगुल से छुडा सका ।
वह एक बार फिर बेघर हो गया था । वह अपने लिए किसी छत की तलश कर रहा था कि आचानक उसकी मुलकात अपने एक पुराने मित्र से हो गई ।
वह मित्र उसे बहुत दिनों बाद मिल था उस मित्र का उस शहर में एक छोटा सा कारोबार था । उसने जब उस मित्र के सामने अपनी समस्या रखी तो उसने बडे आपनत्व से उसके सामने प्रस्ताव रखा कि जब तक उसका कोई प्रबंध नहीं हो जाता है चाहे तो वह उसके घर मे रह सकता है जब प्रबंध हो जाए तो चले जाना ।
उसे उस समय अपना वह मित्र एक देवता के समन प्रतीत हुआ ।
वह अपने उस मित्र के घर रहने लगा और साथ ही साथ अपने लिए कोई कमरा भी ढूंढने लगा ।
शहर में किराए से मकान मिलना मुश्किल था और मकान खरीदने का उसमें सामर्थ नहीं था । जो मकान किराए पर मिल रहे थे उनका किराया ही उसके आधे वेतन से ज्यादा था । उस पर डिपाजिट की भारी राशि की शर्त....
कुछ दिनों बाद थककर उसने सोचा उसे ऐसे क्षेत्र में मकान तलश करना चाहिए जहा मकानों के दाम कम हो भाले ही उस क्षेत्र का स्तर उसके स्वभाव आनुसार ना हो उसे इन बातों से क़्या लेना देना था । उसे तो केवल रात में सिर छिपाने के लिए एक छत चाहिए थी ।
दिन भर तो उसे उस छत से कुछ लेना देनी नहीं था क़्योंकि दिन भर तो वह आफिस में रहेगा ।
उसे एक इस्टेट इजंट ने मगनभाई से मिलया । मगनभाई ने उसे बताया बस्‍ती में उनकी एक चाल है । उस चाल में एक कमरा खाली है वह कमरा वह उसे पच्चाीस हजार रूपये डिपाजिट पर दे सकता है ।
‘‘ठीक है मगनभाई मैं डिपाजिट का प्रबंध करके आपसे मिलता हूं’’ कहकर वह चल आया और पैसों के प्रबंध में लग गया ।
इतने पैसों का प्रबंध बहुत काफ़्नि काम था । अपने शहर जाकर उसने दोस्तों, रिश्तेदारों से कर्ज लिया, घर के गहने, बँक में रखकर कर्ज लिया और डिपाजिट का प्रबंध करके वह वापस आया और मगनभाई से मिल । मगनभाई ने उसे कमरा दिखाया । उसने कमरा पसंद करके पैसे मगनभाई को दे दिए और अपनी नई छत के नीचे चल आया ।
शाम को अपनी जरूरत की चीजों और सामन से लदा जब वह बस्‍ती में आया तो अपने घर के पास पहुंचकर उसके पैर धरती में गढ गए । गली में चारों और पुलिस पैकली हुई थी ।
‘‘क़्या बात है भाई,’’ उसने एक व्‍यक्ति से पूछा । ‘‘यह गली में पुलिस क़्यों आई है ? क़्या हुआ है ?’’
‘‘और क़्या होगा ? दारू के आड्डे पर झगडा हुआ, झगडे में चाूक चल गया और एक आदमी टपक गया......’’ कहता वह आदमी आगे बढ गया ।
‘‘तो इस स्थान पर शराब का आड्डा भी है’’ सोचता वह आगे बढा । अपने रूम के दरवाजे पर पहंुच कर उसने सामन अपने पैरों पर रखा और कमरे का दरवाजा खोलने लगा ।
सामन कमरे में रखकर ममले का पता लगाने के लिए बाहर आया तो तब तक पुलिस जा चुकी थी और लश भी उठाई जा चुकी थी । आसपास के लेग उस बारे में बाते कर रहे थे ।
‘‘आज तो पुलिस ने आड्डा बंद कर दिया है कल फिर चालू हो
जाएगा ।’’
‘‘यह आड्डां कहा है’’ उसने पूछा तो लेग उसे सिर से पैर तक देखने लगे ।
‘‘बाबू किस दुनिया में हो जिस चाल में तुम रहते ड़ों उसी में तो यह शराब का आड्डा है ।’’
‘‘मेरी चाल में शराब का आड्डा’’ आश्चर्य से वह उछल पडा।
‘‘हा ना केवल शराब का, बालिक एक जुए का आड्डा भी है । एक
कमरें में मदक पदार्थ बिकते है और दूसरे को कमरों में धंदा करने वालियां
रहती है ।’’
यह सुनते ही उसकी आखों के सामने तारे नाचने लगे ।
उसकी चाल मे जुए, शराब और मदक पदार्थ बेचने वालों के आड्डे है यहां वेशाए रहती है और अब वह भी उसी चाल में रह रहा है ।
उस दिन तो उसे केवल यह पता चल कि वह कैसी जगह रहने के लिए आया है परंतु दो चार दिनों में यह पता चल गया कि वहां रहना कितना बडा प्रकोप है ।
लेग बेधडक उसके कमरें में घुस आते और उससे तरह तरह की पकरमईशें करने लगते
‘‘एक बोतल चाहिए’’
‘‘जरा एक आफू की गोली देना’’
‘‘एक चरस की पुडिया चाहिए’’
‘‘एक गर्द की पुडिया चाहिए’’
‘‘चंदा को बुलना आज उसका फुल नाईट का रेट देगा’’
वह सब सुनकर अपना सिर पकड लेता और उस व्‍यक्ति को पकड के घर बाहर निकाल देता और उसे बताता कि उसकी इच्छित वस्तु उसे कहा मिल सकती है ।
क़्योंकि इस बीच उसे पता चल गया था कि कहा कौनसा धंदा चलता है और उस धंदे का मलिक कौन है ?
कमरे का दरवाजा खुल रखना एक सिर दर्द था इसलिए उसने कमरे के दरवाजे को हमेशा बंद रखने में ही खैरियत समझी थी । परंतु दरवाजा बंद रखना और भी आधिक सिर दर्द था ।
दरवाजा जोरजोर से पाटी जाता जैसे अभी तोड दिया जाएगा । वह दरवाजा खोलता तो वही प्रश्न सामने होते थे जो दरवाजा खुल रखने पर आजनाबियों द्वारा घर में घुसकर पूछे जाते थे ।
वह सोचता वह आकेल है केवल रात को सोने के लिए यहां आता है तो उसकी यह हालत है यदि उसका परिवार इस कमरे में रह रहा होता तो ? इस कल्‍पना से ही वह कांप उठता था ।
यहां उसके आकेले का रहना मुश्किल है तो वह भाल यहां अपने परिवार को लने का किस तरह सोच सकता है ?
हर दिन एक नई कहानी, एक नया हंगाम, एक नई घटना सामने आती थी । शराबी जुआरियों का आपसमें लडना तो एक आम सी बात थी । एक ग्राहक चंपा के घर में जाने के बजाए सामने वाले रघु के घर में घुस गया और उसकी पत्‍नी से छेडछाड करने लगा ।
परंतु इस छत के नीचे तो हर शण आतंक में रहकर गुजारना है ।
इन बातों से घबराकर उसने निर्णय ले लिया कि उसे यह घर छोड देना चाहिए जब तक किसी और छत का प्रबंध नहीं हो जाता भाले ही उसे बेघर रहना पडे परंतु इस प्रकोप और आतंक से तो वह बचा रहेगा ।
वह सीधा मगनभाई के पास गया और बोल ‘‘मेरा डिपाजिट वापस कर दिजिए मुझे आपके कमरे में नहीं रहना है ?’’
‘‘अरे तुम ग्यारह महीने से पहले वह कमरा किस तरह वापस कर सकते हो । हमरा ग्यारह महीने के किराए का एग्राीमेंट हुआ है । ग्यारह महिने से पहले तुमहारा डिपाजिट किस तरह वापस कर सकता हूं ।’’
‘‘तुम ग्यारह महीने की बात करते हो मैं उस स्थान पर एक पल भी नहीं रह सकता अपनी पूरी चाल तुमने, शराब, जुए, वेश्या के आड्डे चलने वालों को किराए पर दे रखी है और वही जगह मुझ जैसे सज्जन व्‍यक्ति को भी धोखे से किराए पर दे दी । तुम्‍हें ऐसा नीच काम करते हुए शर्म आनी चाहिए थी । मेरे बजाए किसी शराब, जुए वेश्या का आड्डा चलने वाले को देते वह तुम्‍हें ज्यादा किराया देता ।’’
‘‘अरे भाई, उन लेगों को मैंने किराए पर कमरे कहा दिए है । मैंने उस जगह चाल बाई थी और इस ललच में कमरे किराए पर नही दिए थी कि मुझे ज्यादा डिपाजिट और किराया मिलेगा वे गुण्डे बदमश लेग ताले तोडकर उन कमरोंमें घुस गए और अपने काले धंदे करने लगे । मैंने सिर्फ एक शरीपक आदमी को वहां वह कमरा किराए पर दिया था जो उस वातावरण को देख कर कुछ दिनों में ही भाग गया । उस कमरे पर भी गुंडे कब्जा ना करले इसलिए वह कमरा मैंने तुम्‍हें किराए पर दे दिया अब तुम भी उस कमरे को खाली करने की बात कर रहे हो अरे बाबा जाओ मैं वह कमरा तुम्‍हें दे दिया हमेशा के लिए दे दिया । मुझे उस कमरे का किराया भी नहीं देना । यदि तुम वह कमरा छोड दोगे, और मैं तुम्‍हें तुमहारा डिपाजिट वापस दूंगा तो उस कमरे पर कोई गुंडा कब्जा कर लेगा ।’’
मगनभाई की बात सुनकर उसका क्रोधठंडा पड गया । उसे लगा मगनभाई तो उससे आधिक दया का पात्र है ।
‘‘मगनभाई, गुंडो ने तुमहारी पूरी चाल पर कब्जा कर लिया और तुमने पुलिस में शिकायत भी नहीं की ।’’
‘‘शिकायत करके क़्या मुझे अपना जीवन गंवाना है ? वे सब गुण्डे लेग है उनके मुंह कौन लगेगा । पुलिस उनका कुछ नहीं बिगाडेगी । पुलिस उनसे मिली हुई है । शिकायत पर थोडी देर के लिए उन्‍हे आंदर कर देगी बाद में आजाद होकर वे मेरी जान के दुश्मन बन जाएंगे इसलिए मैंने यह सोच लिया है कि वह मेरी चाल है ही नहीं मुझे धंदे में घाटा हो गया है । देखो आगर तुम वहां रहना नहीं चाहते हो तो किसी को भी वह कमरा अपना डिपाजिट लेकर किराए पर दे दो मैं उसे नया किराया नाम बनाकर दे दूंगा ।’0ं
मगनभाई की बातें सुनकर वह चुपचाप वापस घर आ गया । उस रात उसे रात भर नीदं नहीं आई । उसके सामने एक ही प्रश्न था । वह वहां रहे या वहां से चल जाए ?
फिलहाल तो ऐसी परिस्थिती थी वह उस स्थान से कहीं भी जा नहीं सकता था और वहां रहना एक प्रकोप था ।
परंतु वह इतना भी कायर नहीं था किस प्रकोप से भायभीत होकर पलयन कर दे ।
उसने स्वयंको हर तरह की परिस्थितियों का सामना करने के लिए तैयार कर लिया । उसे केवल रातही में तो उन मनासिक यातनाओं को झेलना पडता था । दिन में तो वह आफिस में रहता था ।
दिन में वहां क़्या होता है, या जो कुछ होता है उसे उन बातों से कुछ लेना देना नहीं था । परंतु रात घर आने पर दिने में जो कुछ वहां हुआ है उसे सब मलूम पड जाता था ।
दो शराबियों ने उषा को छेडा ।
एक गुंडे ने आशोक की पत्‍नी की इज्जत लूटने की कोशिश की ।
गुंडो में जमकर मर पीट हुई कई घायल हुए आज गुंडो के टकराव में पिस्तौल चल पडी । गोली से कोई गुंडा घायल तो नहीं हुआ परंतु गोली सामने वाले लक़मण के लडके को जा लगी जिसे आस्पताल ले जाया गया उसकी स्थिति नाजुक है ।
जो लेग उसे यह कहानियां सुनाते वह उनपर बरस पडता
‘‘कब तक तुम लेग यह सब सहन करते रहोगे ? तुम शरीपक लेग हो, यह शरीपकों का मेहलल है, गुंडो ने इस पर कब्जा करके शरीपकों को यहां रहने के लयक नहीं रखा है । तुम चुपचाप सब सहन करते रहे तो तुम लेगों के साथ भी यही सब होने वाल है । यदि इससे मुएिक़्त चाहते हो तो इसके विरूध एक हो जाओ और इसके विरूध आवाज उठाओ... गुंडो और बदमशों के विरूद्ध पुलिस में शिकायत करो । तुमहारी शिकायत पर पुलिस को कारवाई करनी ही पडेगी और यह सब रूक जाएगा ।’’
‘‘जावेद भाई हम ये सब नहीं कर सकते’’ उसकी बातें सुनकर वे सहम गए । ‘‘यदि हमने ऐसा किया तो संभाव है पुलिस कारवाई करे, परंतु वह ज्यादा दिनों तक गुण्डों को लकआप में नहीं रख पाएंगे । पुलिस में शिकायत करने पर वह हमरे शत्रु बन जाएंगे और आजाद होते ही हमसे बदल जरूर लोंगे। इसलिए हम सोचते है उन गुण्डों से क़्या उलझा जाए ? जो कुछ हो रहा है उसे चुपचाप सहन करने में ही भालई है ।’’
‘‘यही तो आप लेगों की कमजोरी है । विरोध करने का ना साहस है ना शाएिक़्त, जिससे गुंडो का साहस बढता जा रहा है । विरोध नहीं कर सकते सब गलत सलत सहन कर लेगे ।’’ वह क्रोधमें बोल ‘‘यदि मेरे साथ एक दिन भी ऐसा कुछ हुआ तो मैं बिलकुल सहन नहीं करूंगा । जो मेरे साथ ऐसी वेसी हरकत करेगा उसे मजा चखाउंगा....!’’
दूसरे दिन जब वह आफिस से आया तो उसे तीन चार गुंडो ने घेर लिया । उनकी सूरते और चेहरे ही बता रहे थे वे गुंडे है ।
‘‘ऐ बाबू, क़्यों बे ! क़्यों बहुत बडा लीडर बनने की कोशिश कर रहा है ? बस्‍ती वालों को हमरे विरूध भाडका रहा है तू नया नया है इसलिए तुझे हमरी ताकत का आंदाजा नहीं है । ये लेग पुराने है इन्‍हे हमरी ताकत का पता है इसलिए ये कभी हमसे नहीं उलझते । आगर यहां रहना है तो भालई इसी में है कि तुम भी पुराने बन जाओ । हमरी शाएिक़्त जान ले और हमसे मत उसझो जैसा चल रहा है चलने दो... जो कुछ हो रहा है होने दो...’’ एक गुंडा उसे घुरता बोल ।
‘‘दादा ! यह बातों से नहीं मनेगा एक दो हड्डाी पसली टूटेगी तो सारी लीडरी भूल जाएगा । इसे अभी मजा चखाता हूं’’ कहते एक गुंडे ने अपनी हाकी स्टाीक हवा में लहराई ।
‘‘नहीं आज के लिए इतनी वार्निंग कापकी है ।’’ उस गुंडे ने हाकी वाले गुंडो को रोका ।
‘‘इसके बाद इसने होशियारी की तो मेरी ओर से इसकी चार हाड्डियां ज्यादा तोडना कहता वह सबको लेकर चल गया... ।’’
वह सन्नाटे में आ गया । उसका सारा शरीर पसीने में भीग गया उसे ऐसा अनुभव हो रहा था जैसे कई हाकी स्टाीक उसके शरीर से टकराए है । उसका शरीर पीडा का पकोडा बना हुआ है ।
उसे रात भर नींद नहीं आई ।
आंखो के सामने गुंडो के चेहरे और कानो में उनकी वार्निंग गूंजती रही। यदि आज वे गुंडे हाथ उठा देते तो वह किस प्रकार स्वयं को उनसे बचा पाता ?
उसके मस्तिष्‍क में एक ही बात चकरा रही थी जो आज टल गया वह कल हो भी सकता है ।
इससे बचने का एकही रास्ता है वह यहां चुपचाप आंखे बंद करके रहे। जो कुछ यहां हो रहा है उससे आंजान बना रहे तो उसे कभी कोई खतरा नहीं होगा । परंतु वहां रहना भी तो किसी नरक में रहने से कम नहीं था ।
आए दिन गुंडो के झगडे, पकसाद, दंगा, शराबी, जुआरी, नशेबाज, लेगों का बेधडक घर में घुस आना.... बदतमीजी से दरवाजा पीटना, बार बार पुलिस के छापे, छापों में गुंडे, बदमसों का निकल भागना शरीपों का पकडा जाना ।
बात बात पर चाकु, छुरी का चलना । आसपास रहने वालों की पत्‍नी, बहनों, मंओ से गुण्डों की बदतमीजिया ।
वह सोचने लगा किसी से डिपाजिट लेकर यह कमरा उसे देकर इस नरक से निकल जाए फिर सोचता वह आकेल इस नरक में नहीं रह पाता है कोई शरीपक, बाल बच्चे वाले को इस नरक में डालना क़्या उचित होगा ?
उसकी अंतरआत्म इसके लिए तैयार नही होती थी और उसे उस छत के नीचे रहने के लिए स्वयं से समझौता करना पडा .....! द द
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

Hindi Short Story Kahin Kuch Ghalat By M.Mubin

कहानी कहीं कुछ ग़लत लेखक एम. मुबीन
तीन दिन से परिस्थितियां बिलकुल उसके विपारित चल रही थीं और वह क़्या करें उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था ।
तीन दिन पहले किशोर पर दिल का दौरा पडा था और उसे आस्पताल में दाखिल करना पडा था ।
जिस दिन किशोर आस्पताल में दाखिल हुआ था उस दिन शहर में उसकी चार सभाएं थी - चार बडे बडे उपनगरों की महिल मंडल की शाखाओंने उसकी अध्‍यक्षता में ढ़ाीमती लता गुप्ता पर हुए आत्याचारों के विरोध में सभाएं रखी थी ना केवल उसे उन सभाओं में धुआंधार भाषण भी करने थे ।
रात में ही उसने सारी तैयारियां कर ली थी ।
तीनो सभाओं में क़्या भाषण करना है वह लिख लिया था । तीनों सभाओं में भाषण तो एक ही करना था बस थोडा सा अंतर उसने उन तीनों भाषणों में कर दिया था । किस सभा के लिए कौनसी साडी, कौनसे गहने पहनने है । कैसा मेकआप करना है तय कर लिया था ।
परंतु सवेरे 6 बजे किशोर के सीने में हलका सा दर्द उठा ।
प्राथामिक उपचार के बाद भी जब आराम नहीं हुआ तो उसने अपने पैकामिली डाक़्टर को पकोन कर के बुल लिया ।
डाक़्टर ने जांच करने के बाद घोषणा कर दी कि संकेत को दिल का दौरा आया है तुरंत आस्पताल ले जाना जरूरी है ।
किशोर को एक हार्ट स्पेशालिस्ट के पास ले जाया गया । उसने तुरंत किशोर को इन्सेन्टाीव केयर युनिट में दाखिल करके उपचार शुरू कर दिया ।
ग्यारह बज गए ।
ग्यारह बजे उसकी दादर में सभा थी ।
उसके लिए बडी परीश की घडी थी । एक ओर पाति था तो दूसरी ओर सभा ।
यदि पाति का ध्यान रखते हुए सभा में नहीं जाती है तो अभी तक जो इज्जत, मन-सममन उसने बनाया था उसपर प्रभाव पड सकता है ।
ऐसी हालत में पाति को छोडकर सभा में जाती है तो चारों ओर से उस पर उंगालियां उठेगी ।
‘‘देखो, कैसी औरत है पाति की जान पर बनी है और इसे नेतागिरी की सूझी है ।’’
‘‘नारी स्वतंत्रता का नारा लगाने वाली नारियां यही करती है ।’’
‘‘भाई ये आधुनिक नारी है इनके लिए इनकी स्वतंत्रता और आधुनिकता ही सब कुछ है । मनवी रिश्ते चाहे पाति हो या बच्चे इनके लिए कोई महत्व नहीं रखते ।’’
जब उससे सहन नहीं हो सका तो उसने उस स्थान पर पकोन लगाया जहा पर सभा थी ।
‘‘मिसेस वर्म’’ दूसरी ओर से कहा गया सारे मेहमन समयपर आ गए है सभा के लिए भी कापकी भीड जम हो गई है । बस आपही का इंतेजार है । आप आएं तो सभा की कारवाई शुरू करें ।’’
उसने पकोन तो इसलिए लगाया थी कि वह सभा संचालिका को बता दे कि वह सभा में नहीं आ सकती ऐसी मजबूरी है परंतु दूसरी ओर की रिपोर्ट सुनकर उसे लगा यदि वह सभा में ना जाए तो सभा पक़्लाप हो जाएगी और सभा में ना जाने के कारण उसके नाम पर भी धब्बा लगेगा ।
‘‘बस मैं आ रही हूं’’ कहते उसने पकोन रख दिया ।
उसी समय डाक़्टर ने आकर उसे खुशखबरी सुनाई
‘‘मिसेज वर्म घबराने और चिंता करने की कोई बात नहीं है, मिस्टर वर्म खतरे से बाहर है ममूली सा दौरा था जिस पर हमने नियंत्रण पा लिया अब उन्‍हे आराम की जरूरत है । आप चाहें तो उनसे मिल सकती है ।’’
डाक़्टर की यह बात सुनते ही वर तीर की तरह किशोर के पास पहुंची।
‘‘किशोर तुम कैसे हो ?’’
‘‘अब फ़ीक हूं’’ किशोर के होठों पर फीकी मुस्कान उभर आई उसका चेहरा पील पहा हुआ था और चेहरे से निर्बलता टपक रही थी ।
‘‘तुम्‍हें कोई तकलीपक तो नहीं है ?’’
‘‘नहीं अब मैं बिलकुल ठीक हूं ’’
‘‘तुम्‍हें मेरी जरूर तो नहीं है ?’’
‘‘क़्यों ? तुम यह सवाल क़्यों पूछ रही हो ?’’
‘‘किशोर, तुम तो जानते ही हो चारों उपनगरों में आज मेरी सभाएं
है दादर की सभा तो आरंभा होने वाली है बस मेरा इंतजार हो रहा है... मैं
जाऊं ।’’
‘‘जाओ’’ किशोर ने मुर्दा स्वर में उत्तर दिया ।
‘‘किशोर मुझे वापस आने में देर भी लग सकती है’’
‘‘कोई बात नहीं,’’ किशोर बोल ‘‘मेरी देखभाल के लिए डाक़्टर और नर्से है ।’’
‘‘थैंक़्स किशोर, तुम कितने समझदार हो, मेरा कितना ख्याल रखते हो। भागवान तुम्‍हारे जैसा समझदार पाति हर स्‍त्री को दे ।’’ कहती वह किशोर का मथा चूमकर बिजली की तरह वार्ड से बाहर निकल गई ।
उसने ड्राईवर को आंधी तू फान की तरह सभागॄह पहुंचने का आदेश दिया । ड्राईवर ने भी आदेश का पालन किया और वह ठीक समय पर सभागॄह पहुंच गई ।
सभा में उसने बडा जोरदार भाषण किया । उसके हर वाक़्य पर हाल तालियों से गूंज उठता था ।
अब वह जमना लद गया जब औरतें घूंघट मुंह पर डाले घर की चाल दीवारी में सारा जीवन गुजार देती थी । आज की नारी जीवन के हर क्षेत्र में पुरूय्रों के साथ साथ पुरूय्रों के एंकधे से एंकधा मिलकर चलना चाहती है । बडे बडे विद्वानो ने इस बात को स्वाीकार किया कि देश की प्रगाति के लिए महिलओं की सहायता और राळ्राीय कार्यक्रमें में उनका सहभाग बहुत जरूरी है आज वही देश प्रगाति कर रहे है जिन देशों की स्रिया देश के राळ्राीय कार्यक्रमें में भाग लेती है । महिल मंडल भी एक ऐसी संस्था है जो राळ्र के हित और देशकी तरक़्काी के लिए नए नए कार्यक्रम चलता है उन कार्यक्रमें में महिलओंका शामिल होना देश की प्रगाति में हाथ बटाना होता है । लता गुप्ता भी उन्‍हीं कार्यक्रमें में शामिल होती थी और देश की प्रगाति के लिए काम करती थी । उसका महिल मंडल के कार्यक्रमें में शामिल होना क़्या कोई पाप था ? आगर नहीं था तो फिर उसे इन कार्यक्रमें में शामिल होने से क़्यों रोका गया ? ना केवल रोका गया बालिक उसे उसके इस आपराध की ऐसी घाीनौनी सजा दी गई है कि सादियों तक उस सजा को सुनकर मानवता कांपेगी । उसके हाथ, पैर और चेहरा जलती सलखों से दागा गया है और यह घिनौना कार्य और आपराध करने वाल आपराधी विनोद गुप्ता है जो अबतक अपनी पहुंच के कारण आजाद है । कितनी विडमबना है । बात है आज के दौर में जब सारी दुनिया में औरतों की स्वतंत्रता की बात चलकर औरतों को समन आधिकार दिए जा रहे है । यहां भरतकी नारी दमन और आत्याचार की शिकार है । उसके लिए स्वतंत्रता की बात करना पाप है । राळ्राहित के लिए काम करना पाप है । मिसेस गुप्ताने यह साहस किया तो उसके साहस की उसे यह सजा मिली कि उसके हाथों और चेहरे को जलती सलखों से दागा गया और यह आपराध करने वाल उसका आपराधी पाति अब भी आजाद है । लता के साथ इन्सापक नहीं हुआ है । हम लता के लिए इन्सापक चाहती है । यदि लता के साथ न्याय नहीं किया गया, उसके पाति को उसके कुकर्म की सजा नहीं दी गई तो हम सब नारी जाती इसके लिए आंदोलन करेंगी ।
इसी प्रकार के भाषण उसने चारों सभाओं में दिए उसके भाषण पर खूब तालियां बजी और उसकी जय जयकार भी हुई । लता गुप्ता, सुमन वर्म जिंदाबाद । ‘विनोद गुप्ता हाय हाय के नारे भी लगे ।’
रात के ग्यारह बजे उसकी आंतिम सभा समप्त हुई और वह सभा से सीधी आस्पताल पहुंची ।
इस बीच उसने बहुत चाहा कि वह आस्पताल पकोन लगाकर किशोर से बात करके उसकी हालत, खैरियत पूछे परंतू उसे समय ही नहीं मिल सका ।
जब वह आस्पताल पहुंची तो किशोर गहरी नींद सो रहा था ।
‘‘हमने उन्‍हे नींद का इंजेक़्शन दिया है ताकि उन्‍हे गहरी नींद आए और उन्‍हे ज्यादा से ज्यादा आराम मिले ।’’ डाक़्टर ने उसे बताया ।
‘‘मिसेस वर्म आप दिनभर कहा थी ? किशोर साहब बार बार आपको पूछते रहे थे ?’’
‘‘मैं बहुत जरूरी काम से गई थी डाक़्टर साहब’’ वह बोली । ‘‘मैं उन्‍हे बताकर गई थी फिर भी वे मेरे बारे में पूछ रहे थे ?’’
‘‘हा, डाक़्टर बोल, उनकी तकलीपक कुछ बढ रही थी । जाहिर सी बात है ऐसा हालत में वे आपको ही पूछेंगे । वैसे हमने दवाओं से बढती तकलीपक पर नियंत्रण पा लिया था परंतु वह कहते है ना कभी कभी दवाओं से आधिक प्रभावी किसी अपने का सामिय्र्य होता है इसलिए मेरा याहि परामर्श है आप ज्यादा से ज्यादा मिस्टर वर्म के पास रहने का प्रयत्न करे ।’’
‘‘जी’’ उसने उत्तर दिया तो डाक़्टर कमरे के बाहर चल गया ।
किशोर पलांग पर निश्चिंत सोया था ।
दिनभर की दौड-धूप के बाद उसका सारा शरीर टूट रहा था । आंखे नींद से बेझिल हो रही थी । मनचाह रहा था कि वह गहरी नींद सोकर इस थकन को मिटाए ।
परंतु उसे गहरी नींद केवल अपने बिस्तर, अपने कमरे के पलांग पर मिल सकती थी ।
किशोर के पास कोई नहीं था । उसके आने के बाद नर्स भी चली गई थी । शायद यह सोचकर कि अब वह आ गई है वही किशोर की देखरेख करेगी।
उसका किशोर के पास रूकना बहुत जरूरी था । परंतु वह रूक नही सकती थी ।
क़्योंकि दिनभर की थकन उतारने के लिए गहरी नींद जरूरी थी जो किशोर के पास नहीं मिल सकती थी ।
कल भी आज की तरह भागदौह भारा दिन होगा । दो मंत्रियों से मिलकर मेमेंरेंडम देना था । परसों के मेर्चे की तैयारी करनी थी । जुलूस निकालने के लिए पुलिस की आनुमती लेनी थी मेर्चे के लिए संबंधित लेगों को सुचित करना था । पत्रकार पारिषद में मेर्च के उद्देश बताने थे । मुख्य उद्देश विनोद की गिरपक़्तारी, उसे सख्त से सख्त सजा दिलवानी थी । लता गुप्ता के लिए यही सबसे बडा न्याय था ।
लता आस्पताल में थी । पुलिस ने विनोद को गिरपक़्तार किया था । परंतु फिर जमनत पर यह कहकर छोह दिया था कि लता अभी तक अपना बयान नहीं दे पाई जिसके आधार पर विनोद को गिरपक़्तार करके उसके विरूद्ध कार्यवाही की जा सके ।
और उन लेगों की मंग थी विनोद को गिरपक़्तार करते तुरंत हवालत में डाल दिया जाए । लता का बयान आता रहेगा । लता पर विनोद ने जो आत्याचार किए है उसके बाद लता विनोद के विरूद्ध ही बयान देगी । लता के पीछे पूरी मंडल की शाएिक़्त है । मंडल लता को न्याय दिलकर ही रहेगी ।
परंतु पुलिस ने यह कहकर दोबारा विनोद को गिरपक़्तार करने से इंकार कर दिया था कि बिना लता के बयान के हम विनोद पर हाथ नहीं डाल सकते। बस इसी के विरोध में उन्‍हों यह आंदोलन छेड रखा था । लता उनके मंडल की एक इकाई की सदस्य थी । वह मंडल की मिटिंगों में नियामित आती थी इसी पर उसके और उसके पाति के बीच बार बार विवाद होता था । पातिका कहना था घर के जरूरी काम छोडकर वह मिटींगो मे ना जाया करे और लगा पाति की बात नहीं मनती थी । इसी बात पर विवाद बढा था ।
लती मिटींग में जाने पर आडी थी । इस पर विनोद ने गरम सलखों से उसके हाथ, पैर, चेहरा दाग दिया । ।
उपक !
इसे सुनकर हर कोई कांप उठा था और तहप उठा था । आपराधी को सजा दिलने के लिए हर किसी ने कमर कस रखी थी और इसी के लिए यह आंन्दोलन छिहा हुआ था । अध्‍यक्ष के नाते वह तो सा#िकय ही थी परंतु किशोर की बिमरी इस आंदोलन की राह में एक रोडा बन गई थी ।
यही बातें सोचते सोचते वह पास वाले पलांगपर बेखबर सो गई ।
कब आंख खुली पता नहीं परंतु इतना आभास जरूर हुआ कि किशोर उसे आवाज दे रहा है ।
‘‘क़्या बात है ?’’ वह आंखे मलते-मलते ही उठी ।
‘‘पानी देना’’ किशोर बोल ‘‘मैं कबसे आवाजें दे रहा हूं घंटी बजाने पर कोई नर्स भी नहीं आती ।’’
उसने किशोर को पानी दिया और जाकर डयूटी नर्सपर बरस पडी ।
‘‘मेरे पाति कब से घंटी बजा रहे है कोई आने को तैयार नहीं । क़्या इसके लिए तुम इतने उंचे चार्ज लेते हो ? यही सेवा है ? मैं उपरतक तुम लेगों की शिकायत कर दूंगी ।’’
‘‘मौडम हम समझे आप है... इसलिए नहीं आई’’ नर्से डरते डरते बोली।
‘‘मैं सो रही थी ‘‘वह पैर पटक कर बोली,’’ यदि मेरी आंख नहीं खुलती तो मेरा पाति प्यासा तहप-तहप के मर जाता, कहती वह पैर पटकती दोबारा कमरे में आई ।
‘‘सुमन मेरे पास बैठों’’ किशोर बोल मुझे नदीं नहीं आ रही है ।
‘‘तुमहारी तबीतय तो ठीक है नां ?’’
‘‘हा ठीक है’’ किशोर ने उत्तर दिया सिर्फ नींद नहीं आ रही है ।
‘‘किशोर तुम सोने की कोशिश करों’’ वह बोली मुझे कल बहुत जरूरी काम है दिनभर की भाग दौह से बुरी तरह थक गई हूं प्लीज मुझे सोने दो ’’
‘‘ओके डार्लींग’’ किशोर बोल ।
सवेरे आंख खुली तो 6 बज रहे थे फिर भी नींद का खुमर नहीं उतरा था ।
‘‘किशोर तुमहारी तबीयत कैसी है ?’’
‘‘ठीक है परंतु रात भर नहीं सो सका...’’
किशोर से एक दो बातें करने के बाद वह घर चली आई यह कहकर कि वह दोपहर में आएगी ।
घर आई तो आया सोनू को स्‍कूल जाने के लिए तैयार कर रही थी ।
‘‘मेम साहब बाबा स्‍कूल जाने के लिए नहीं कह रहा है’’
‘‘क़्या बात है बेटे तुम स्‍कूल क़्यों नहीं जाना चाहते ?’’
‘‘मममी मेरी तबीयत ठीक नही है’’ सोनू बोल ।
‘‘यह अच्‍छी बात नहीं है बेटे’’ वह सोनू से बोली ।
‘‘मेम साहब बाबा को कुछ कुछ बुखार सा लग रहा है ।’’ उसने सोनू की गर्दन पर हाथ रखा तो उसका दिल धक से रह गया ।
सोनू को हलकासा बुखार था ।
‘‘आया सोनू को पहले डाक़्टर को बता आओ फिर स्‍कूल ले जाना... मुझे आज बहुत काम है ।’’
‘‘जी मेम साहब’’ आया बोली और वह तैयार होने के लिए अपने कमरे की ओर बढ गई ।
वह बडे भागदौड और थका देने वाल दिन था । एक दो मंत्रियों से बातें हुई थी । एक दो आधिकारियों को डराया-धमकाया गया था । मेर्चे के लिए पुलिस की आनुमति मंगी गई थी और आंत मे जाकर सब लता से मिली थी और उसे बताया था कि, उसे न्याय दिलने के लिए वे सब क़्या कर रही हैैं ।
‘‘यह सब आप क़्यों कर रही है’’ सारी बातें सुनकर लता बोली ‘‘इस प्रकार तो विनोद संकट मे आ जाएगा ।’’
‘‘हम यही तो चाहती है कि पुलिस विनोद को गिरपक़्तार करें और उसे कडी सी कडी सजा दे ।’’
‘‘परंतु किस लिए ?’’
‘‘उस आपराध और आत्याचार के लिए जो विनोद ने तुमपर किये है । महिल मंडल की मिटिंगो मे शामिल ना होने के लिए तुम्‍हारे हाथ, पैर, चेहरा और शरीर को गरम सलखों से दागा ।’’
‘‘नहीं यह झूठा है कि उन्‍हों मेरे शरीर को दागा’’ लता बोली ।
‘‘यह सच है कि उस दिन उनकी तबीयत ठीक ना होने के कारण मुझे मिटींग में जाने से उन्‍हों रोका जब मैं नही मनी तो डराने के लिए वे सलखे गरम करके लए परंतु उससे मुझे दागने का उनका आशय कतई नहीं था । घबराकर मैंने उन्‍हे पीछे धकेल तो सलख उनके हाथ से छूट गई और मेरे चेहरे और शरीर पर लगने से वह जल गया । इतनी सी बात का आप बतंगड ना बनाईए आपके इस आंदोलन के कारण पुलिस विनोद को गिरपक़्तार कर लेगी । हमरा दांपत्य जीवन खतरे में पह जाएगा ।’’
लता के इस बयान के बाद तो हर किसीने अपना सिर पकड लिया । उन्‍हे लगा जैसे वे अपनी परछाईयों से लह रही है । अच्‍छा हुआ लता ने पुलिस को बयान नहीं दिया वरना सब किए कराए पर पानी फिर जाता ।
कल इतने बडे विराट मेर्चे का आयोजन किया गया है और यहां तो उसका कारण ही खत्म हो रहा है । लता को बडी मुश्किल से समझा-बुझकर इस बात के लिए रोका गया कि वह कोई भी बहाना बनाकर पुलिस को कल तक बयान ना दे ।
यह तय किया गया कि कल निकलने वाल मेर्चा रद ना किया जाए मेर्चा ना निकालने पर पूरे महिल मंडल की बदनामी होगी ।
कल का मेर्चा निकल पाए फिर बाद में चाहे कुछ भी हो । चाहे लता पुलिस को बयान देकर उसे निर्दोष सिद्ध कर दे ।
शाम को आस्पताल पहुंची तो डाक़्टर नर्से किशोर को घेरे हुई थी ।
‘‘क़्या हुआ डाक़्टर’’ किशोर की हालत देखकर उसका दिल धक से रह गया ।
‘‘मि. वर्म के सीने में दर्द हो रहा था हम घबरा गए उन्‍हे फिर दौरा ना पडा हो, परंतु ऐसी बात नहीं है ।’’
डाक़्टर और नर्से उपचार करने के बाद चली गई ।
वह किशोर को सांत्वना देने लगी की वह ना घबराए उसे कुछ नहीं हुआ है । किशोर यह पूछ रहा था कि वह दोपहर को आस्पताल क़्यों नहीं आई तो वह विस्तार से किशोर को बताने लगी की आज क़्या-क़्या हुआ ।
आचानक उसे सोनू की याद आई तो उसने घर पकोन लगाकर नौकरानी से सोनू के बारे में पूछा ।
‘‘मेम साहब बाबा का बुखार बहुत बढ़ गया है । वह आपको याद कर रहा है ।’’
‘‘मैं अभी आई’’ कहकर उसने पकोन रख दिया और किशोर के पास आकर बोली
‘‘किशोर सोनू को बहुत बुखार है मेरा उसके पास रहना जरूरी है तुम आजकी रात किसी तरह आकेले गुजार ले ।’’
‘‘ठीक है’’ उसकी बात सुनकर किशोर मरे स्वर में बोल ।
रातभर सोनू को सख्त बुखार रहा । वह थोडी देर के लिए सो जाती । जागती तो सोनू को उसी स्थिति में पाती ।
दिन निकल तो उसकी स्थिति वैसी ही थी ।
ना चाहते हुए भी वह मेर्चे में जाने की तैयारी में लग गई ।
सोनू रो रहा था ।
‘‘मममी मुझे छोडकर मत जाईये ।’’
‘‘मैं अभी आ जाऊंगी बेटा’’ वह बोली । ‘‘आया बाबा को डाक़्टर के पास ले जाना ।’’
‘‘जी मेम साहब’’ आया बोली ।
वह घर से निकल ही रही थी कि आस्पताल से पकोन आया किशोर पर फिर हलका सा दौरा पडा है ।
यह सुनकर वह सन्नाटे में आ गई ।
‘‘ठीक है आ रही हूं’’ कहते हुए उसने पकोन तो रख दिया परंतु बडी दुविधा में पह गई ।
आस्पताल जाए या मेर्चे में । दोनो जगह जाना जरूरी था । यदि मेर्चे में नहीं गई तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा । उसकी बडी बदनामी होगी ।
दिल कहा करके वह मेर्चे के लिए चल दी ।
मेर्चे मे भाग लेने वाली बाकी औरतें आ गई थी परंतु कुछ महत्वपूर्ण हास्तियां गायब थी ।
‘‘मलती क़्यों नहीं आई ?’’
‘‘उसकी बेटी को तेज बुखार है इसलिए नहीं आ सकी’’
‘‘विशाखा’’
‘‘उसके घर मेहमन आए हैैं ।’’
‘‘बरखा’’
‘‘उसका पाति आस्पातल में है ।’’
‘‘राखी’’
‘‘उसके बच्चे की आज परीश है ।’’
वे लेग इसलिए नहीं आई है और वह ?
प्रश्न चिन्‍ह उसके सामने आ खहा हुआ । इसका बेटा घर में बुखार में तप रहा है । फिर भी वह मेर्चे में आई है ।
और वे लेग इतनी जरा-जरासी बात के कारण मेर्चे में नहीं आई .
उसकी समझ में नहीं आ रहा था कौन सही है । वह या वे उसका पाति और बेटा बीमर है और उनका.......
मेर्चे के साथ चलते नारे लगाते उसे लग रहा था आज कहीं कुछ गलत उससे जरूर हुआ है ..... । द द
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

Hindi Short Story Dharna By M.Mubin

कहानी धरना लेखक एम. मुबीन
सबसे पहले सेक्रेटरी ने उन्‍हे इस बात की खबर दी थी
‘‘अपने आजका आखबार पढा ?’’
‘‘अभी तो जागा हूं आपके पकोन की आवाज से तो भाल आखबार किस तरह पढ सकता हूं ? कहिए क़्या कोई खास खबर है ?’’
‘‘हा, सरकार ने उन स्‍कूलों की लिस्ट जारी की है जिन्‍हे सरकार की ओर से मन्यता प्राप्त नहीं है । उस सुचि में हमरी स्‍कूल का भी नाम है ।’’
‘‘आं क़्या कह रहे है आप ? सरकारने हमरी स्‍कूलको मन्यता नहीं दी? तो क़्या हमरी इतनी भागदौड, पत्रव्यवहांर मंत्रियों, नेताओं से मिलना जुलना सब बेकार गया ?’’
‘‘सब बेकार गया है अध्‍यक्ष जी ! मुझे तो पहले ही भाय था ऐ सा ही होगा और ऐसा ही हुआ... हमें तो पहले ही सूचना मिल गई थी इस वर्ष भी सरकार ने हमरी स्‍कूल को मन्यता नहीं दी और अब तो सारी दुनिया को मलूम पड गया है । इस बात की जानकारी सबको होते ही एक तू फान आ जाएगा अध्‍यक्षजी तू फान....!’’
‘‘हा से#ोकटरी साहब’’ वे चिन्तित स्वर में बोले । उस तू फान के आगमन को मैं भी अनुभव कर रहा हूं...।
और उसके बाद तो कई पकोन आए ।
लेगों को उत्तर देते देते उनका सिर चकराने लगा था । वे तो इस बात से ही चिन्तित हो रहे थे कि लेगों को पकोन पर समझाना काफ़्नि हो रहा है । जब उनका सामना होगा तो वे किस तरह उन्‍हे समझा पाएंगे ?
‘‘गुप्ताजी अपने जो स्‍कूल खोली है उसे तो अभी तक मन्यता भी नहीं मिल पाई है । उस में हमरे बच्चे पढ रहे है यह तो उनकी जीवन से बहुत बडा खिलवाड है ।’’
‘‘गुप्ताजी अपने तो मेरे बच्चे को कहीं का नहीं रखा । आपकी स्‍कूल को अभीतक मन्यता नहीं मिल सकी है इसका आर्थ है आपकी स्‍कूल से निकलने के बाद मेरे बच्चे को कहीं भी दाखल नहीं मिल सकेगा ?’’
‘‘गुप्ताजी, स्‍कूल खोलने के नामपर अपने जनता से लखों रूपया जम किया है । पैसा तो अपने जमकर लिया परंतु अपनी स्‍कूल को मन्यता नहीं दिल सके ?’’
वे सारी बातें सुनने के बाद एक ही उत्तर देते
‘‘आपको चिन्ता करने और उत्तेजित होने की कोई जरूरत नहीं । यह सब सरकारी दावपेच और आडचने है । एक मस के भीतर हमरी स्‍कूल को मन्यता मिल जाएगी ।’’
उन्‍हों बडे विश्वास से सभीको उत्तर दे दिया था और तय भी कर लिया था कि हर किसी को वे यही उत्तर देंगे परंतु वे अपने विश्वास को खोखलेपन के बारे में सोंच सोचकर स्वयं ही कांप उफ़्ते थे ।
दो वर्ष से तो मन्यता प्राप्त करने के लिए सारे प्रयत्न किए जा चुके है। कागजी कार्यवाही और पत्रव्यवहांर से फाईलों का ढेर तैयार हो चुका है । शिश विभाग से शिश मंत्रालय, शिश मंत्रालय से साचिवालय और मुख्य मंत्री के आफिसों के चक़्कर लगाते लगाते उनके साथ साथ से#ोकटरी, कुछ सदस्यों, स्‍कूल के हेडमस्टर, क़्लार्एक और शिशकों की चप्पले घस चुकी है ।
परंतु फिर भी मन्यता नहीं मिल सकी ।
तुरंत मन्यता प्राप्त करने का मर्ग भी बताया गया था । कुछ देकर काम निकाल लिया जाए, परंतु मंग इतनी ज्यादी थी कि उन्‍हे और पूरे बोर्ड को सोचने के लिए विवश होना पडा था ।
बात ऐसी भी नहीं थी कि मंग का प्रबंध नहीं हो सकता था मंग से कई गुना आधिक तो उनके पास जम था ।
परंतु वे अपने उसूल पर आड गया ।
‘‘हम लेगों से, दूसरों से सिर्फ लेते है । भाल हम क़्यों दूसरों को दें और फिर हमजो कुछ कर रहे है इसमें हमरे व्‍यक्तिगत स्वार्थ तो कुछ भी नही है । हम यह सब जनता के लिए कर रहे है हम यह चाहते है कि हमरी स्‍कूल में बच्चे पढकर दुनिया की प्रातिस्पर्धा में टिकने की शमता प्राप्त करें और स्पर्धा में सपकल ड़ों ।’’ इसके लिए उन्‍हों शिश के स्तरपर बहुत आधिक ध्यान दिया था और यह बात तो जनता से भी मनवा ली थी कि उनकी स्‍कूल का पढाई का स्तर शहर की दूसरी स्‍कूलों के स्तर से बहुत उंचा है । शिशक बहुत मेहनत करते है ।
तभी तो उनकी स्‍कूलमें दाखल लेने के लिए बच्चों के आफ्रिभावकों की कतारें लग गई थीं और वे इन्ड़ाी कतारों का तो लभा उफ़्ते थे ।
‘‘देखिए आपतो अच्‍छी तरह जानते है । हमरी स्‍कूल की शिश का स्तर कितना उंचा है । परंतु क़्या करें हमरी स्‍कूल को कोई सरकारी ग्रांट तो मिलती नही आप लेगों से डोनेशन पकीस और जनता से स्‍कूल चलने के लिए जो चंदा मिलता है उसी से यह स्‍कूल चलती है । इसलिए आप हमरी विवशता को समझे। हम डोनेशन के नाम पर जो मंग रहे है, हमरी वह मंग कोई अनुचित मग नहीं है । वह हमरी मजबूरी है इसलिए हमरी मजबूरी को समझते हुए और अपने बच्चों के उज्वल भाविय्र्य के लिए आप ज्यादा से ज्यादा रकम दें ताकि हमें स्‍कूल चलने में कोई कठनाई ना आए और आपके बच्चे का भाविय्र्य बने ।’’
अपनी विवशता बताकर और लेगों को अपने बच्चों के सुनहरे भाविय्र्य का सपना दिखाकर उन्‍हों दाखलों के नाम पर उंची डोनेशन वसूल की थी ।
जिस का कहीं कोई हिसाब किताब नहीं था वे लखों रूपये उनकी तिजोरी में जम थे उनके व्यापार में लगे थे ।
स्‍कूल खोलने के लिए चंदे के नाम पर भीी उन्‍हों लखों रूपये जम किए थे जिनसे उनका कारोबार बढा था और वे आए दिन स्‍कूल के नामपर धनपातियों से दान के रूप में लखों रूपये जम करते रहते थे । इस #िकयामें कितना रूपया जम हुआ और कितना खर्च हो गया कितना बाकी है ? बाकी है भी या नहीं ? इस बारे में तो स्‍कूल के सदस्यों को भी पता नहीं था । कुछ कुछ से#ोकटरी को मलूम था, परंतु वह तो उनका आदमी था ।
सब तो यही जानते थे स्‍कूल की स्थापना की गई, स्‍कूल के लिए जमीन खरीदी गई, उस पर स्‍कूल के लिए जरूरी इमरत बनाई गई । स्‍कूल शुरू हुई स्‍कूल का और स्‍कूल के शिशकों के वेतन का खर्च बढता जा रहा है । सब वे आदा करते है । अब इतने पैसे जम तो नहीं हो सकते । जरूर गुप्ताजी अपनी जेब से भी लगाते ड़ोंगे । बडे आदमी है । भागवान ने धन के साथ दिल भी दिया है तभी तो दिल खोलकर स्‍कूल में पैसा लगाते है ।
हमें स्कुल का सदस्य बना लिया यही उनकी महानता है । इस सदस्यता के बदले में एक पैसा भी तो नहीं लिया । ना अब मंगते है । लेग ऐसे पदों को प्राप्त करने के लिए लखों रूपये खर्च कर डालते है । फिर भी यह पद नहीं मिल पाता है परंतु हमें तो गुप्ताजी ने मुपक़्त में दे दिया बडे दिलवाले है....।
सदस्य अब तक शायद उनके बारे में यहीं सोचते ड़ों परंतु अब जब उन्‍हे पता लगेगा कि अभी तक स्‍कूल को मन्यता नहीं मिल सकी है तो वे जरूर पूछेंगे ‘‘गुप्ताजी, स्‍कूल को अभी तक मन्यता क़्यों नहीं मिल सकी ?’’
‘‘उन्‍हे समझाना कौनसी बडी बात है’’ वे सिर झटककर बहबहाए । ‘‘कह दूगां कि मंत्री मन्यता देने के दस लख मंगते है । स्‍कूल सदस्य के नाते आप लेग एक एक लख दीजिए स्‍कूल को मन्यता मिल जाएगी ।’’
यह सुनते ही सब ठंडे हो जाएंगे । सदस्य मंडल में ऐसे ऐ से एंकजूस जम किए है कि सिगरेट के लिए एक रूपया खर्च करने से भी डरते है । एक लख चंदे की बात सुनकर साप सूंघ जाएगा । इसके बाद सापक कह दूंगा ‘‘आप लेग इतना नहीं कर सकते और फिर भी सदस्य बने रहना चाहते है तो स्‍कूल में क़्या हो रहा है उसपर ध्यान ना दें मैं हर बात संभालने के लिए हूं....’’ इसके बाद तो सबकी बोलती ही बंद हो जाएगी ।’’
स्‍कूल गए तो स्‍कूल में बच्चों के घर वालों का तांता लगा हुआ था । सबका एक ही सवाल था ‘‘आपके स्‍कूल को अभी तक मन्यता नहीं मिल सकी है । इस तरह तो आपके स्‍कूल में पढकर हमरे बच्चे की जिंदगी बर्बाद
हो जाएगी। वह कहीं का नहीं रहेगा... इस तरह हमरे बच्चे के जीवन से
तो ना खेलों ।’’
उनका एकही उत्तर होता
‘‘आप निश्चित राहिए, हमरी स्‍कूल को एक मस के भीतर मन्यता मिल जाएगी ।’’
बच्चों के घरवाले से छुटकारा मिल तो हेड मस्टर और टीचरों ने घेर लिया ।
‘‘सर हम इस आशा में कम वेतन मे भी कडी मेहनत से बच्चों को पढा रहे है कि ग्रांट मिलने के बाद हमें अच्‍छा वेतन मिलने लगेगा, परंतु यहां तो स्‍कूल की ग्रांट की बात तो दूर स्‍कूल को अभी मन्यता तक नहीं मिल सकी है ।’’
‘‘सब ठीक हो जाएगा आप लेग अपने अपने क़्लास में जाईए ।’’
उसके बाद उन्‍हों से#ोकटरी, क़्लार्एक, हेड मस्टर को आदेश दिया ।
बीडीओ, जेडपी, शिश सभापाति, शिश विभाग, शिश मंत्रालय, शिश मंत्री सब जगह एक कडा पत्र भेजिए । यदि एक महिने के भीतर हमरी स्‍कूल को मन्यता नहीं दी गई तो स्‍कूल के सदस्या, हेडमस्टर, शिशक, स्‍कूल में पढने वाले बच्चे और उनके घर वाले मंत्रालय के सामने भूख हडताल कर देंगे... देखिए इस पत्र से हलचल मच जाएगी और एक मस से पहले ही हमरे हाथो में स्‍कूल की मन्यता का पत्र आ जाएगा ।
उनकी बात सुनकर हर किसी की आंख में आशा की एक नई ज्योत जगमगाने लगी ।
वह धमकी भी कारगर साबित नहीं हो सकी थी । कुछ जगड़ों से तो धमकी का कोई उत्तर ही नहीं आया था । कुछ जगड़ों से टका सा जवाब आया था ‘‘नियमें के आनुसार आपकी स्‍कूल को मन्यता नहीं दी जा सकती ।’’
सबकी आखों के सामने अंधेरा छाया था ।
‘‘ठीक है’’ पता नहीं क़्यों फिर भी उनकी आवाज में आत्मविश्वास था। 20 तारीख को यहां से मंत्रालय तक एक मेर्चे का प्रबंध किया जाए । 20 तारीख को दिनभर पूरी मेनेजिंग बाडी, हेडमस्टर, स्‍कूल शिशक, तमम बच्चे और जो आने के लिए तैयार ड़ों ऐसे बच्चों के मं बाप को मंत्रालय के सामने धरना देना है और मन्यता ना मिलने तक भूख हडताल करनी है ।
‘जी’ सबने एक स्वर में उत्तर दिया ।
20 तारीख को दो गाडियों में 200 के लगभाग बच्चों को ठोंसकर भारा गया । जगह इतनी तंग थी कि बच्चे ना खडे हो सकते थे ना बैठा सकते थे । उन्‍हे सांस लेना काफ़्नि हो रहा था, दम घुट रहा था परंतु वे मुंह से कोई फारियाद नहीं कर सकते थे । फारियाद सुनने वाल कोई नहीं था । एक बडी सी गाडी में स्‍कूल की सदस्य सामिती के लेग थे । एक दूसरी छोटी गाडी में हेडमस्टर और शिशक। केवल कुछ ही बच्चों के घरवाले आ पाए थे उन्‍हे सीधे मेर्चे के स्थान पर आने के लिए कहा गया था ।
दो घंटे बाद गाडियां आजाद मौदान में जाकर रूकी । बच्चे गाडियों से उतरे तो उन्‍हे ऐसा अनुभव हुआ जैसे नरक की यात्रा से उन्‍हे मुएिक़्त मिल गई है। सूरज सर पर चढ आया था और आसमन से आग बरसा रहा था ।
मेर्चे की तैयारी की जाने लगी । बच्चों के हाथ ताख्तियां, बेनर देकर उन्‍हे नारे याद कराए जाने लगे । और जरूरी निर्देश दिए जाने लगे ।
‘‘सर पानी ! बहुत प्यास लगी है’’ कोई बच्चा बोल तो उसकी आवाज में सैकडों स्वर शामिल हो गए ।
‘‘अब यहां पानी कहा से मिलेगा । हम तो भूख हडताल करने आए है। पीने-खाने के लिए नहीं’’ एक टीचर ने उन्‍हे डांटा तो बच्चे अपने पकटे हुए होठोंं पर जीभा पेकरकर रह गए ।
प्यास से एंकठा में कांटे पडे थे । गले से आवाज नहीं निकल रही थी । उपर सिरपर सूरज आग बरसा रहा था । परंतु फिर भी वे पूरी ताकत लगाकर नारे लगाते लडखडाते कदमें से आगे बढ रहे थे
‘‘हमरी मंगे पूरी करो’’
‘‘हमरी स्‍कूल को मन्यता दो’’
‘‘हमरे जीवन से मत खेलों’’
‘‘शिश मंत्री हाय हाय’’
‘‘शिश विभाग हाय हाय’’
‘‘मुख्य मंत्री मुर्दा बाद’’
शिशक बच्चों पर नजर रखे हुए थे । उन्‍हे जोर जोर से नारे लगाने के लिए उकसाने कोई नारी नहीं लगाता तो उसे टोकते । आपस में बाते करने वालों को डांटते । उन्‍हे कतार मे यातायात से बचकर चलने के निर्देश देते ।
कमेटी के सदस्य मेर्चे के साथ एक दूसरे से फ़्ट्टा, मसखरी, हंसी मजाक करते चल रहे थे । कभी कोई सबके लिए आईस्#कीम या शर्बत ले आता या ठंडे की बोतले या फिर खाने की कोई चीज तो उनका आनंद लेते वे मेर्चे के साथ साथ चलते ।
दो घंटे बाद मेर्चा मंत्रालय पहुंच गया । मंत्रालय से पहले ही बडे से मौदान में पुलिस ने उन्‍हे रोक लिया ।
मौदान में सब धरना देकर बैठा गए ।
आगे आगे कमेटी के सदस्य, गुप्ताजी और से#ोकटरी थे । पीछे हेडमस्टर और शिशक और उनके पीछे बच्चे ।
सब जोर जोर से नारे लगा रहे थे ।
सभी को कडा निर्देश था कि वे इतनी जोर से चीखें कि मंत्रालय की छते हिल जाए ।
परंतु दस करोड जनता की चीखों से जिनका कुछ नहीं बिगडता था दो सौ बच्चों के नारे भाल उन छतों का क़्या बिगाड सकते थे ।
किसी मंत्री की गाडी आती तो ‘जिंदाबाद, मुर्दाबाद’ के नारे और जोर जोर से लगाए जाते ।
भूख प्यास से बच्चों का बुरा हाल था । उपर से तपतीधूप जिस जमीन पर बैठे थे वह भी तंदूर की तरह तप रही थी । बच्चों की आंखो के सामने अंधेरा छा रहा था । आचानक एक बच्चा चकराकर गिर पडा ।
सब उसकी ओर दौडे । उसे होश में लने की कोशिश की जाने लगी। मगर बच्चा आंखे नहीं खोलता था । समीप खडे डाक़्टर ने बच्चे को अच्‍छी तरह देखा और चिन्ता भारे स्वर मे बोल
‘‘बच्चे की हालत बहुत नाजूक है इसे तुरंत आस्पताल पहुंचाना जरूरी है ।’’
‘‘नहीं’’ गुप्ताजी डट गए । ‘‘चाहे बच्चे की जान चली जाए बच्चा धरने से नहीं हटेगा । जब तक हमरी मंग नही पूरी होगी कोई भी बच्चा नहीं उठेगा ।’’ इस बीच दो और बच्चे चकराकर गिर गए थे । कई बच्चों ने भूख-प्यास निबलर्ता से गर्दन अपने साथियों के कांधे पर डाल दी थी । कुछ निर्बलता, कमजोरी के कारण जमीन पर लेट गए थे ।
डाक़्टर और वहां पहरा देने वाली पुलिस के चेहरों पर हवाईया उड रही थीं ।
गुप्ताजी और सदस्यों के चेहरे पर विजयी मुस्कान नाच रही थी ।
खबरे मंत्रालय में पहुंची और वही हुआ तो ऐसे मौको पर होता है ।
मंत्रालय हिलने लगा ।
‘‘एकाध बच्चा मर गया तो विपक्ष और प्रेस सारा आसमन सिर पर उठा लेगा । हमरी जान का दुश्मन हो जाएगा । उन्‍हे कह दो कि वे धरना खत्म करके वापस अपने शहर चले जाए । उनकी मन्यता के बारे में गंभीरता से विचार किया जाएगा ।’’ एक से#ोकटरी बोल ।
‘‘सर वे मन्यता से किसी भी कम आश्वासन पर बात करने को तैयार नहीं है । सापक कहते है उनकी स्‍कूल को मन्यता दी जाएगी तभी धरने से
उठेंगे ।’’
इसबीच चार और बच्चों के बेहोश होने की खबर पहुंची ।
शिश मंत्री के सारे साचिव घबरा गए । मुख्यमंत्री के साचिव के भी कान खडे हो गए । बात मुख्य मंत्री तक पहुंच गई ।
‘‘तमशा बनाकर बात मत बढाओ । शिश मंत्री से तुरंत कहो कि मैंने कहा है उनकी स्‍कूल को मन्यता दे दें ।’’
नीचे आकर गुप्ताजी को यह खबर दे दी गई
‘‘शिश मंत्री ने आपके स्‍कूल को मन्यता दे दी है और वे आपसे बात करना चाहते है ।’’
गुप्ताजी का चेहरा गुलब की तरह खिल उठा था ।
‘‘मेरे प्यारे साथियों और बच्चों हमरा धरना सपकल रहा । जिस काम के लिए हमने धरना दिया था, मेर्चा निकाल था वह काम हो गया है । शिश मंत्री ने हमरी स्‍कूल को मन्यता दी है । इस धरने में हमें जो कळ हुए वे रंग लए । कुछ पाने के लिए कुछ खोना और सहना पडता है । अपने आधिकार की लडाई लडने और उन्‍हे प्राप्त करने में थोडी तकलीपक तो होती है । आप लेग धरना खत्म करके वापस अपने शहर जाए मैं और कमेटी सदस्य मंत्रीजी से बात करके आते है ...... ।’’ द द

अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
मोबाईल 09322338918

Hindi Short Story Main Gawahi Doonga By M.Mubin

कहानी मैं गवाही दूंगा लेखक एम. मुबीन
दरवाजे पर दस्तक देने पर दरवाजा रहमत खान ने ही खोल परंतु मुझ पर नजर पडते ही उसके चेहरे का रंग उड गया ।
‘‘आरें खोंची कुमर खान तुम ?’’
‘‘क़्यों क़्या कोई शक है ?’’ मैं उसकी आंखो में देखता मुस्कुराया ।
‘‘अरे लले की जान तुम यहां क़्यों आया यहां का हालत आजकल बहुत खराब है....’’ वह जलदी से बोल ।
‘‘क़्क़्यों खाना क़्या यही आपकगानिस्तान की शान .... और पफ़्नों की परंपरागत मेहमन नवाजी है कि हजारों मील दूर से आए मेहमन से यह पूछा जाए कि तुम यहां क़्यो आया ?’’
‘‘ओ लले की जान तुम तो हमरा जान है’’ कहते रहमत मुझसे लिपट गया ।’’ अरे तुम हमरे घर आया आपकगानिस्तान आया आम को ऐसा लगता खुदा का फारिश्ता हमरे घर मेहमन बनकर आया आम अपना आंखे तुमहारी राह में बिछाए कि दिल निकालकर तुम्‍हारे सामने रख दे आम को कुछ सुझाई नहीं देता । खान आमरे होते हुए तुम्‍हारे जिस्म पर खराश आ जाए तो आमरा जिंदगी किस काम का । बस इसी के लिए ऐसा कहता है आओ आंदर आओ कहते उसने मुझे भीतर लिया ।
उसके घर में उसकी पत्‍नी, बच्चों और सभी घर वालों ने मेरा उसी तरह स्वागत किया जिस प्रकार हर होता है ।
परंतु मैंने अनुभव किया इस बार उनकी आंखो मे मेरे आने की चमक नहीं लहारही थी । भाय की छाया पैकल रही थी ।
दो घंटे तक नहा धो कर खाना खाकर लेट कर मैंने अपनी थकान उतारी ।
‘‘खान आम जानता है काबुल से एंकधार तक का रास्तो का सपकर कितना थका देने वाल है । ऊई हम पफ़्न तो आसानी से यह सपकर तय कर सकता है । लेकिन तुम हिन्दोस्तानी को कितना तकलीपक होता होगा हम जानता है....’’ रहमत खान मेरे पैर दबाता हुआ बोल । ‘‘इस बार तुम बहुत खराव वक़्त में यहां आया है । यहां जंग कभी भी शुरू हो सकता है वई बमबारी होगा .. हर आपकगाणिस्तानी को लगता है वह आमरीका की बमबारी से नहीं बचेगा ... खान ऐसे वक़्त में आम तुम को किस तरह बचाए हमें तो फिक्र खा रहा है क़्या तुम आखबार वखबार नहीं पडता । टी.वी. नहीं देखता जो इस वक़्त यहां चल आया।’’
‘मैं जानता हूं यहां जंग कभी भी शुरू हो सकती है फिर भी मैं यहां आया’ मैंने उत्तर दिया ।
‘यह जानता था तो फिर क़्यो आया ?’
‘खान व्यापारी आदमी हूं.... जंग तो होनी है सोचा जंग शुरू होने से पहले कुछ व्यापार करके न फा कम लूं’ मैं उसकी आखों में देखता मुस्काया । ‘‘एक बार जंग शुरू हो गई तो आपकगानिस्तान से आने वाल सूखा मेवा खरीदना मुश्किल हो जाएगा इसलिए सोचा जंग से पहले जाकर खरीदारी कर लूं... यह खरीदारी... शायद बाद में लखो का लभा दे ...।’’
‘बानिया का औलद है ना मरते वक़्त भी नपेक व्योपार का ही सोचेगा’ रहमत खान हंसा ।
‘‘परंतु खान दुनिया मे जान पैसे से ज्यादा कीमती है ?’’
‘‘छोडो इन बातो को’’ मैंने कहा । ‘‘यह बताओ मेरा काम होगा ।’’
‘‘जरूर होगा ?’’ रहमत खान बोल । ‘‘इस बार तो तुम्‍हें मेवा सस्ता और बहुत सा मिल सकता है । लेग जंग के डर से सारा मल बेचने को निकाल रहा है ।’’
‘‘तो फ़्कि है ! आज आराम करते है कलसे काम पर लग जाते है,’’ मैंने कहा ।
‘‘ठीक है खान तुम आराम करो....’’ कहता रहमत खान मुझे छोडकर चल गया ।
मेरा सूखे मेवे का व्यापार था । मेरा मल आपकगानिस्तान से भी आता था रहमत खान वहां पर मेरा एजंट था । साल मे एक दो बार मैं वहां जाकर उसे पैसा दे आता वह मेरे लिए मल खरीदी करता मल इरान ले जाता और वहां से समुद्राी रास्ते भरत भेज देता ।
कभी कभी वह मल के साथ स्वयं चल आता था । वह बहुत इमनदार था । पारंपारिक पफ़्नों की इमनदारी और व फादारी उसमे रची बसी थी ।
11 सितंबर के बाद जो हालत पैदा हो गए थे यह तय हो गया था कि आमरिका आपकगानिस्तान पर आक्रमण करेगा यह युद्ध बरसों चल सकता था ।
युद्ध के बरसों चलने का आर्थ था वहां से मल नहीं आ सकता था । इसलिए मेरी व्यावसायिक मनोवॄत्ति ने सोचा क़्योंना मैं इस बार युद्ध आरंभा होने से पूर्व वहां जाकर इतना मल खरीद लऊ कि मुझे साल छ महिने फिर मल की कमी अनुभव ना हो । इसलिए लेगों के लख मना करने के बावजूद वहां चल आया ।
मेरे लिए ना तो आपकगानिस्तान नया था ना काबुल ना एंकधार । बरसों से यहां आता रहा हूं इसलिए जान पहचान वालों की कमी नहीं थी ।
मुझे विश्वास था आठा दस दिन में काम निपटाकर मैं वापस भरत चल जाऊंगा ।
काम हो जाता है तो फिर भाविय्र्य में मिलने वाले लभा का हिसाब लगाने का ही काम है ।
इन्ड़ाी विचारों में आंख लग नहीं सकी । आचानक धमकों की आवाज के कारण मैं घबराकर उठा गया । बत्ताी भी चली गई ।
घर में रहमत खान, उसकी पत्‍नी और बच्चों का शोर और चीखें गूंजने लगी तो बाहर भायानक धमके ।
‘कुमर खान कुमर खान’ अंधेरे में रास्ता टटोलता रहमत खान मेरे कमरे में आया । ‘‘उठों... जंग शुरू हो गया है आमरिका के तैयारों (हवाई जहाजों) ने हमल कर दिया है । चारों तरपक बम बरस रहा है... चले बाहर
आओ ।’’
मैं भी घबराकर बाहर आया ।
बाहर धुप आंधकार था । आकाश सियाह था जिसमें कहीं कहीं तारे चमक रहे थे तो कहीं कहीं चमकदार गोले ।
चारों ओर क़ितिज पर बमें के गिरने से धमकों और चमक लहराती थी। लेग सडकों पर दीवानों की तरह भाग रहे थे । बच्चों और स्रियों के रोने और चीखने से कान के पर्दे पकटे जा रहे थे और कभी कभी बम के धमके इन चीखों और शोर को दबा देते थे ।
एक घंटे के बाद प्रलय रूक गई ।
‘लगता है आमरीकी वापस चले गए ।’ मेरे समीप खडा रहमत खान बडबडाया । ‘‘खुदा का शुक्र है उसने हमरे घर को महफूज रखा आओ घर में चले....।’’
‘‘नहीं रहमत खान इस हमले से एंकधार में क़्या तबाही आई है मैं देखना चाहता हूं’’ मैंने कहा ।
‘‘खान तुम पागल तो नहीं हो गया ?’’ नहीं खान आमरीकी फिर वापस आएगा और फिर एंकधार पर बम बरसाएगा... रातभर बरसाता रहेगा... ऐसे में घर के बाहर रहना खतरा है ... ।
उसकी बात में मुझे सच्चाई लगी ।
सोने का तो प्रश्न ही नहीं उठता था ।
बच्चों को सुलकर हम आपसमें बाते करने लगे ।
‘‘रहमत खान तुम लेग कब तक इस तरह बमबारी का सामना करते रहोगे ... तुम लेगों में उनकी मुकाबल करने का सामर्थ और शाएिक़्त तो है नहीं फिर उनकी बात मनकर तुम लेगों ने जंग टालने की कोशिश क़्यों नही की ? मैंने पूछा ।
‘‘खान क़्या तुम समझता है हम शैतान आमरीका की बात मन लेते तो जंग टल जाता.. । नही खान हम जाहिल उस शैतान को अच्‍छी तरह समझता
है । उसे अपना ताकत बताने के लिए कोई मुलक चाहिए था जहा वह अपने हाथियारों का तजरूबा कर सके ! उसे आपकगानिस्तान मिल है । 11 सितंबर को जो उसकी ताकत का गुरूर टुटा था, उसकी धोनस बनाने के लिए हम जैसे नंगे, भूखे, गरीब आपकगानियों का खून बहाना उसे जरूरी था । वह शैतान कहता है, आमरीका में जो हुआ उसाम ने किया अरे जब उसाम आमरीका में घुसकर यह सब कर रहा था तो क़्या उसका खुफिया एजन्साी सो रहा था । आगर उसाम ने यह किया भी तो उसमें तालिबान, गरीब आपकगानी आवाम का क़्या कसूर, अरे कल तुमहारा विश्व हिन्दू पारिषद का कोई सिर फिरा कोई जहाज आगवा करके राम मंदिर बनाने व्ड़ाईट हाऊस पर गिरा दे तो हिन्दूस्तान का क़्या होगा ? हिन्दूस्तान में बी.जे.पी. का हुूकमत है जो विश्व हिन्दू पारिषद का साथी है । फिर आमरिका हिन्दूस्तान पर हमल करेगा तो क़्या यह दुरूस्त होगा ?
‘‘रहमत खान यह तुमहारी मेरी नजर में ना दुरूस्त होगा’’ परंतु दुनिया की नजर में सही । दुनिया ताकत के सामने झुकती है । जिस तरह आज आमरिका के सामने झुक गई है । दुनिया के एक देश ने भी इस बात का विरोध नहीं किया कि उसाम के किए सजा आपकगानिस्तान को देना गलत है । तुमने जिस बात की मिसाल दी है यदि ऐसा कुछ हुआ तो भरत और भरतीय जनता को भी वही कुछ भाोगना पडेगा जो आपकगानी जनता भाोग रही है । बातें ज्यादा देर तक नहीं चल सकी ।
फिर आक्रमण हुआ था ।
फिर वही धमके, वही चीख व पुकार ।
रहमत खान की पत्‍नी और बच्चों की भायभीत चीखें मेरे कलेजो को फाड रही थी ।
बाहर एक शोर मचा हुआ था ।
‘‘भागो - भागो, सुरक्षित स्थानों पर छिप जाओ हमल हुआ है’’ बच्चों और महिलओंकी भाय में डूबी चीखें ।
मैंने कभी युद्ध नहीं देखा था ना कभी हवाई हमले का कोई अनुभव था। शायद उन लेगों ने भी हवाई हमल पहली बार देखा था ।
उनकी जो स्थिति थी मेरी भी वही स्थिति थी बालिक मैं तो सोचने लगा था मैंने जानबूझकर यह मुसीबत मेल ली है । हर कोई मुझे रोक रहा था । मैं वहां ना जाऊं वहां की स्थिति अच्‍छी नहीं है । युद्ध कभी भी भाडक सकता है परंतु मेरी लभा प्राप्त करने की स्वार्थी मनोवॄत्ति मुझे ना रोक सकी थी । मेरा आनुमन था मैं आठा दस दिनों में काम निपटाकर वापस आ जाऊंगा मुझे पता नहीं था । पहले दिन ही युद्ध आरंभा हो जाएंगा ।
अब मैंने केवल अपने आपको संकट में नही डाल था बालिक अपने घरवालों को भी चिंता में डाल दिया था । कल जब वे टी.वी. पर एंकधार पर हुई बमबारी के चित्र देखेंगे तो मेरे बारे में क़्या क़्या सोचेंगे ?
सारी रात हवाई हमले होते रहे ।
सवेरे चारो ओर धुंआ और धूल छाई थी ।
लेग अपने अपने घरों से निकले और रात के आक्रमण से हुए विनाश को देखने लगे ।
फिर तो यह रोज की दिनचर्या हो गई । रातभर हवाई हमले होते और कभी कभी तो दिन में भी आमरीकी विमन गरजते आते बम और मिजाईले छोड छोडकर चले जाते ।
लेग शहर छोड छोडकर भाग रहे थे ।
रात दिन आतंक के साए में भाल कोई जी सकता है । दिनरात घायल सुविधा राहित आस्पतालों में पहुचते जहा उन घायलों को देखने के लिए ना डाक़्टर थे और ना उन्‍हे देने के लिए दवांए ।
घायलों को देखकर कलेजा मुंह को आता था । छोटे छोटे चार पांच साल के बच्चे, बुढाी औरतें । रहमत खान उन दृश्यों को देख देखकर जैसे पागल सा हो गया था ।
‘‘देखो कुमर खान, यह छ साल का बच्चा तालिबान का सिपाही है, उसाम का आतंकवादी है ।’’
‘‘आमरीका ने इस आतंकवादी को कैसा सजा दिया है... यह बूढाी औरत ने 11 सितमबर के हमले में उसाम का साथ दिया था ।’’
रहमत खान की जो स्थिति थी हर सोच विचार करने वाले की यही स्थिति हो सकती थी ।
यहां आने से पहले मैंने बहुत कुछ टी.वी. पर देखा था, आखबारों में पढा था । परंतु यहां आने के बाद ऐसा कुछ भी नहीं पाया था और शायद यहां जो कुछ हो रहा है बाहर वालों को पता भी नहीं चल रहा था ।
घर में खाने का सामन खत्म हो गया था । खाने का सामन नहीं मिलता था । संयुक़्त राळ्र की एक संस्था थी जो लेगों को खाने के लिए अपने गोदामें से अनाज देती थी ।
एक दिन उस पर भी बमबारी हुई । मिजाईल गिरे और खाने पीने का सारा सामन भंग हो गया । अब खाने के लिए कुछ नहीं था । रहमत खान के बीवी, बच्चे भी भूखे थे मैं भी भूखा था । एक दिन आस्पताल पर बम गिरे और आस्पताल के सैंकडो रोगी मरे गए । बम घरों पर गिर रहे थे । घर मलबों के ढेर बन रहे थे । उन में बच्चें, औरतें, बूढे, जवान दब कर मर रहे थे ।
‘‘यह है आमरिका का दहशतगर्दी के खिलपक जंग... दुनिया को दहशतगर्दी को मिटाने के लिए उफ़्या कदम... देखो कितने दहशतगर्द मरे जा रहे है.... वह आस्पताल का सब मरीज दहशत गर्द था । दहशतगर्द को खाना नहीं मिलना चाहिए इसलिए खाने का गोदाम तबाह कर डाल । अब इन घरों की बारी है । इसमे तालेबान, उसाम का साथी रहता है ना । कुमर खान आगर तुम यहां से जिंदा बचकर निकल जाओ तो दुनिया को जरूर बताना कि आमरीका ने किस तरह दहशतगर्दी खत्म किया । अरे 11 सितमबर को जो हुआ उसका तो सारी दुनिया ने मुखालेपकत किया । फिर यह जो हो रहा है बे कसूर छोटा छोटा बच्चा, बूढा, औरत लेग मरा जा रहा है इस पर दुनिया चुप क़्यों है । यह दहशतगर्दी नहीं है तो क़्या आमन पसंदी है ?’’
‘‘रहमत कान तुम अपने आपपर काबू रखो... नहीं तो तुम पागल हो जाओगे....’’ मैं उसे समझाता तो वह हताश होकर बैठा जाता ।
एक दिन बोल ।
‘‘खान - तुम कब यहां फंसे रहोगे... यहां रहे तो किसी दिन आमरिकी बमबारी का शिकार होकर तुम भी मरे जाओगे ... तुम यहां से काबुल चले जाओ। काबुल में इंडियन सि फारतखाना (दूतावास) वाल तुम्‍हें हिन्दूस्तान भेजने का कोई ना कोई इंतजाम कर देगा । तुम सस्ता मेवा खरीदने के ललच में यहां आया मगर तुम अपनी आंख से देख चुका है हर बाग से धुआं उठा रहा है । आमरिकियोंने उन्‍हे भी अपने बमें का निशाना बनाया है । हमरे साथ रहा तो तुमहारा भी वही आंजाम हो सकता है जो हमरा होने वाल है और एक मेहमन को एक पफ़्न के घर में कुछ हो जाए तो वह पफ़्न कयामत के दिन अल्‍लाहह पाक के सामने क़्या मुंह लेकर जाएगा । इसलिए खान कयामत के दिन
रहमत खान को शार्मिंदी करने की कोशिश मत करो तुम वापस हिन्दूस्तान चले जाओ ।’’
‘‘खान । आगर मौ वापस भरत जाना चाहूं तो तुम्‍हारे बताए रास्ते से भरत वापस जा सकता हूं... मगर मैं भरत नहीं जाना चाहता । मैं अब यहीं रहूंगा। तुम्‍हारे साथ जब तक यह युद्ध चलता रहेगा... मैं यहीं रहूंगा । इस युद्ध को देखोगे तुम लेग जिस तरह आतंकवाद को मिटाने के नाम पर आतंकवाद का शिकार बन रहे हो वह देखूंगा, भाोगूंगा । मैं गवाह रहूंगा । यहां पर हुए
आतंकवाद की एक एक घटना, एक एक शण का । तुम लेगों की गवाही तो शायद नजर आंदाज कर दी जाए । शायद मेरी गवाही पर दुनिया को विश्वास आ जाए कि आतंकवाद मिटाने के नामपर कितने बडे आतंकवाद को सहारा दिया गया था...... ।’’ द द
अप्रकाशित
मौलिक
------------------------समाप्‍त--------------------------------पता
एम मुबीन
303 क्‍लासिक प्‍लाजा़, तीन बत्‍ती
भिवंडी 421 302
जि ठाणे महा
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