Tuesday, March 23, 2010

Short Story in Hindi By M.Mubin

कहानी
आतंक का एक दिन

लेखकः- एम मुबीन




जब वह घर से निकल तो सबुकछ नित्य के समन चल रहा था ।
बिलिडंग का वाचमौन उसे देखकर खहा हो गया और उसने उसे सलाम किया । उसने सिर के
संकेत से उसके सलाम का जवाब दिया । आगे बढा तो एस.टी.डी. बूथ में बैठे साजिद ने उसे
सलाम किया । उस दिन उसके झेरॉक़्स, पी.सी.ओ में कुछ ज़्यादा ही भीड थी और करनेे वालों
की भी लईन लगी हुई थी ।
क़्लसिक आईल डेप मो बैठे गुड्डो ने भी उसे सलाम किया उसके सलाम का जवाब देता वह सीढियों
से नीचे उतरा ।
सामने आलू प्याज बेचनेवाले दुकानदारों की पारिचित शक़्लों और चेहरे दिखाई दिए ! वही रिक्षा,
हाथगाही, मोटर साईकल और स्कूटरों की रेल पेल और उनोक हार्न का शोर ।
उनोक बीचसे रास्ता बनाता वह बडी कफ़्नाईसे आगे बढा ।
बिस्मािलल चिकन सेंटर पर चिकन खरीदने वालों की कतार लगी
थी । एक तख्ताी पर आज का मूलय लिखा था लटकती, तख्ताी हवा के साथ गोल गोल घूम
रही थी ।
उसके सामने वाली दुकान पर मूलय एक रूपया कम था । सदगुरू होटल के बाहर मिठाई बनाने
वाल प्याज़ के फोडे तल रहा था । बडी सी थाल में वह जलेबियां, वडे और आलू के पकौडे पहले ही
तल चुका था ।
गुलजार कोलड्राीकं मो एक़्का दुक़्का ग्राहक बैठे शीतपेय का आनंद ले रहे थे ।
बफ की गाडी आ गई थी । बफ की बडी बडी लदियां उसमें से उतारी जा रही थी । बफ लेने वालों
की भीड थी । जैसे ही कोई ग्राहक बफ की कीमत आदा करता दो आदमी बडी लेहे की ौकची मो
बफ की लदी फडकर उसे रिक्षा में रख आते । ममू आबुजी की दुकान पर दूध लेने वालों की भीड
थी । उसके सिर पर दूध के मूलय की तख्ताी हवा मो घूम रही थी ।
‘तीन रूपया पाव - दस रूपये का एक किले..’ ‘तीन रूपया पाव - दस रूपये का एक किले..’
टमटर बेचने वाले ज़्ोर ज़्ोर से आवाज़्ों लगा रहे थे ।
‘भई आस्सलम वाले कुम’ आवाज लगाते हुए आनवर और शकील ने नित्य के समन उसे सलाम
किया ।
सलाम का जवाब देकर स्वयं को भीह के धक़्कों और नीचे फैले कीचह से बचाता वह आगे बढा ।
रिक्षा कतार में खडे आजीज ने मुस्काकर उसे सलाम किया ।
पुलिस स्टेशन के बाहर कई सिपाही खडे थे और एक सिपाही उन्ड़ें उनकी डयूटी का एेरिया बता
रहा था ।
‘नमस्कार साहब’ एक सिपाही ने उसे सलाम किया ।
‘आरे पतदार तुम... चले...!’ उसने उससे कहा ।
‘नहीं आज मेंरी डयूटी नहीं है, आज शायद कोई दूसरी सिपाही आए....’ सिपाही ने उत्तर दिया ।
मिर्चवालों की दुकान के पास से गुजरते हुए उसे खांसी आ गई ।
उसने खांसी पर नियंत्रण पाया और आगे बढा । संगम ज्वेलर्स की दुकान भी खुल गई थी ।
राजदीप होटल के काउंटर पर बैठे संदीपने उसे नमस्कार किया और बाहर पूरी भजी बनाने वाले
आदमी को गाली देते हुए उसे जलद आर्डर का मल बनाने के लिए कहने लगा ।
सिनेम की गली से होता वह पस्ट आफिस तक आया। पस्ट आफिस के बाहर, मनी आर्डर,
राजिस्टर करने वालों की भीह थी ।
सईदी होटल के बाहर दो चार आवारा लडोक बैठे आने जाने वालों को छेह रहे थे और आने जाने
वाली लहाकियों और रिुयों पर भद्दे शब्द उछल
रहे थे । उन सबसे होता वह समय पर आफिस प हुंच गया । और आफिस के कामें मो लग गया

आफिस में उस दिन ज्यादा भीड थी काम का बोझ भी आधिक था ।
एक एक को निपटाते हुए कब दो तीन घंटे बीत गए पता ही नहीं चल सका ।
आचानक उसके एक साथी मोहन को उसके भई का फोन आया । फोन पर बात करने के बाद जब
उसे रिसीवर रखा तो उसके चेहरे पर हवाईयां उह रही थी ।
‘क़्या बात है ?’ उसने मोहन से पूछा
‘‘भई का फोन था.. नाके पर किसी वकील को गोली मर दी गई है वह जगह पर ही मर गया -
शहर मो भगदड मच गई है... दुकाने बंद हो रही है.. गडबड होने की शंका है । मोरे भई ने कहा
है कि मौं आफिस से आ जाऊं ।’’
यह बात सुनकर उसके मथे पर बल पड गए । उसने प्रश्नपूर्ण दृळि से बॉस की और देखा ।
‘मौं फोन लगाकर पूरी जानकारी का पता लगाता हू ।’ कहते हुए बॉस ने रिसीवर उफ़्या दो तीन
नंबर डायल करोक झललकर रिसीवर रख दिया ।
‘‘टेलीफोन डेड हो गया है ...’’
थोडी देर बाद चपरासी भी वापस आ गया । वह किसी काम से बाहर गया था ।
‘क़्या हुआ जाधव ?’ उसने पूछा
‘कुछ समझ में नहीं आ रहा है - पूरे शहर में भगदड मची हुई है । किसी वकील को गोली मर दी
गई है । दुकाने बंद हो रही है... लेग घबराहट में उधर उधर भाग रहे है... पता चल है कि रिक्षा
और गाडियों पर पथराव किया जा रहा है... मेंरी आंखों के सामने चार-पांच कांच फूटी रिक्षा आई
है ... सबसे ज्यादा लफडा नजराना के पास है...’
‘नजराना’ ! यह सुनते ही बॉस के चेहरे पर हवाईयां उडने लगी । ‘‘मेंरी बेटी इस समय वहा पर
टयूशन के लिए गई होगी ।’’
और वह घबराकर रिसीवर उफ़्कर फिर नंबर डायल करने लगा ।
संयोग से टेलीफोन लग गया ।
‘‘मीना कहा है ? टयूशन के लिए गई है ? टयूशन का समय तो खत्मा हो गया है... वह आभी तक
वापस क़्यों नही आई ? सुना है उस क़ोत्र में बहुत गडबड चल रही है । तुरंत किसी को भेजकर उसे
टयूशन क़्लस से ले आओ..’’ कहते उसने टेलीफोन का रिसीवर रख दिया ।
परंतु उसके चेहरे पर चिंता के भव थे । उसके बाद उसने घर टेलीफोन लगाकर स्थिती का पता
लगाने का प्रयत्न किया तब तक टेलीफोन डेड हो गया था ।
आफिस से बाहर झांका तो सारी दुकानें बंद हो गई थी । सडोक सुनसान हो गई थी । सडकों पर
कोई वाहन, सवारी, दिखाई नहीं दे रही थी । लेग दो-दो चार-चार की टोलियां बनाकर आपसमें बातें
कर रहे थे ।
‘‘क़्या किया जाए ?’’ उसने बॉस से पूछा ।
‘‘आफिस बंद कर दिया जाए?’’
‘‘बिलुकल बंद कर दिया जाए । जलदी से बाकी बचे काम निपटा ले’’ बॉस ने कहा और फिर घर
टेलीफोन लगाने का प्रयत्न करने लगा ।
‘जाधव सामने के नसीम से मोबाईल ले आओ शायद उससे कोई संपर्क हो जाए’ बॉस ने चपरासीसे
कहा ।
जाधव ने मोबाईल नहीं लाया स्वयं नसीम मोबाईल लेकर आ गया ।
‘‘साहब सारे टेलीफोन डेड हो गए है.. मौं भी कई स्थानों पर फोन लगाने का प्रयत्न कर रहा हू ।
अपको कौन सा नंबर लगाना है?’’
बॉस ने नंबर बताया नसीम ने नंबर लगाने की कोशिश की परंतु नंबर नहीं लग सका ।
‘लगता है सारे शहर के टेलीफोन बंद कर दिए गए है ।’
सब काम समप्त करने में लग गए । उसने दो तीन बार घर टेलीफोन लगाने का दोबारा प्रयत्न किया
। संयोग से एक बार टेलीफोन लग गया ।
‘क़्या स्थिति है ?’ उसने पूछा
‘‘यहा बहुत गडबड है सारी दुकानें बंद हो गई है । सहक की दोनों ओर हजारों लेगों की भीड है
जो एक दूसरे के विरोध में नारे लगा रहे है । मामल कभी भी बिगह सकता है ।’’
‘‘मौं घर आऊं ?’’ उसने पूछा ।
‘‘घर आने की मूर्खता मत करना सारे रास्ते बंद है । रास्तों पर लेगों की भीड है और जोश और
#कोध में भरी भीड कभी भी कुछ भी कर सकती है । आप जहा है वहीं रहे । जब पारिस्थिती
सामन्य हो जाए तो घर आ जाना वरना आने की कोई जरूरत नहीं । आफिस के आसपास आपके
बहुत से मित्र है । किसी के भी घर रूक जाईए और मुझसे संपर्क बनाए राखिए ’’ पत्नाी ने उत्तर
दिया ।
उसने रिसीवर रख दिया ।
आफिस बंद करने की तैयारी हो गई थी ।
मोहन का भई स्कूटर लेकर आ गया ।
‘‘चले मौं चलता हू’’ मोहन बोल ।
‘‘सूनो’’ उसने मोहन को टोका ‘‘पुराने पुल के रास्ते नहीं जाना... वहा खतरा है ।’’
‘‘नहीं मौं नए पुल के रास्ते जाऊंगा’’ मोहन बोल साहब और जाधव भी आफिस बंद करोक जाने
की तैयारी कर रहे थे । उनोक घर आफिस के समीप थे ।
‘‘तुम क़्या करोगे ?’’ बॉस ने पूछा ।
‘‘पत्नाी को फोन किया था वह कहती है मौं घर आने की मुर्खता ना करूं । सारे रास्ते भीड से
भरे है... लेगों के हाथों में हाथियार है। पथराव हो रहा है । रास्ते में कुछ भी हो सकता है । मौं
जिन रास्तों से होकर घर जाता हू वहा तो बहुत ज्यादा तनाव है । फिर उन रास्तों का हर व्या
िक़्त मुझे पहचानता है । जरा सी गडबडकी स्थिति में मेंरी जान को खतरा पैदा हो सकता है ...
।’’
‘‘तो मोरे घर चले । पारिस्थिति सामन्य हो जाए तो अपने घर चले जाना ।’’ बॉस ने कहा ।
‘‘नहीं मौं यहा रूकता हू यादि जरूरत पडी तो आफ घर आ जाऊंगा।’’
आफिस बंद कर दिया गया ।
बास और जाधव चले गए ।
वह आफिस के सामने खडा होकर सुस्ताने लगा ।
उसी समय सामने से मुस्तफा आता दिखाई दिया ।
‘मुस्तफा क़्या बात है ?’ उसने पूछा ।
‘आपसे मिलने ही आ रहा था जावेद भई । पूरे शहर में गडबड चल रही है आफा घर जाना ठाीक
नहीं है । चालिए मोरे घर चालिए । रात में भी मोरे घर रूक जाईए । मौने भाभी को फोन किया
था । भाभी ने कहा है मौं अपको घर आने ना दूं । अपने घर रोक लूं वहा बहुत गडबड है ।’
वह बातें करता मुस्तफा के साथ उसके घर की ओर चल दिया ।
‘गडबड आरंभ किस तरह हुई ?’
‘‘पता नहीं, वह वकील शहर के चौराहे से होता कोर्ट जा रहा था । आचानक दो मोटर साईकल
सवारों ने उसे रोककर उसके सिर में गोली मर
दी । वह वहीं ढेर हो गया । होगी कोई पुरानी दुश्मानी या गेंगवार का चक़्कर... वैसे भी वह
वकील का फी काले कामें में शामिल था और का फी बदनाम था । परंतु एक राजनैतिक पक्षा के
केस भी लडता था । इसालिए उस पक्षा ने पहले राजनैतिक और फिर सांप्रदायिक रंग दे दिया ।
दुकाने बंद कराई जाने लगीं । दुकाने बंद ना करने वाले दुकानदारों को मरा पीटा जाने लगा ।
रिक्षा की कांचे फोडी गई, रिक्षा उलटी कर आग लगा दि गई । विशेष रूप से दाढाी वाले रिक्षा
ड्राईवरों को निशाना बनाया जाता ।’’ #कोध से उसने अपने ड़ोंठा भींचे ।
‘‘यह भी कोई तरीका है सामन्य सी बात है । निजी दुश्मानी या किसी और कारण से एक
साधारण व्यािक़्त की हत्या हुई होगी उसे तुरंत राजनैतिक और सांप्रदायाकि रंग देकर शहर की
शान्ति नळ की जाए और नागारिकों की जान व मल से खेल जाए ...’’
दोपहर का भोजन उसने मुस्तफा के घर किया ।
एक दो बार उसने घर फोन लगाने का प्रयत्न भी किया परंतु फोन बंद होने के कारण संपर्क
स्थाफित नहीं हो सका ।
एक घंटे के बाद आचानक संपर्क स्थाफित हो गया ।
‘‘यहा बहुत गडबड है । पत्नाी बताने लगी ।’’ ‘‘हम बिलडींग की टेरिस पर गए थे । आसपास
हजारों लेग जम है । वे आ#कमण करने की तैयारी कर रहे है । सामने वाली मस्जिद पर पथराव
हो रहा है । इस्लमी होटल पर पथराव किया गया था और उसे लूटने और जलने की कोशिश की
गई थी । परंतु होटल की गली में हजारों लडोक जम हो गए थे उन्ड़ोंने उत्तर में पथराव किया तो
आ#कमणकारी भग गए परंतु दोनों ओर से भडकीली नारे बाजी जारी है । स्थिती कभी भी बिगड
सकती है । आप इस ओर आने की बिलुकल मुर्खता ना करे । मुस्तफा के घर ही रूक जाए ...’’
‘देखो यादि तुमहे बिलडींग पर खतरा आनुभव हो तो बच्चों को लेकर अपने मयोक चली जाना ।’
‘यूं तो बिलडींग को खतरा नहीं है । परंतु जिस प्रकार सामने हजारों लेगों की भीड जम हो रही है
कभी भी कुछ भी हो सकता है, एेसा कुछ हो इससे पहले ही मौं अपने बच्चों के साथ मयोक चली
जाऊंगी ।’ पत्नाी बोली ।
पत्नाी का मयका ज्यादा दूर नहीं था । घर सुराक़ित रास्तों पर था । इसालिए उसे इस बात का
संतोष था । पत्नाी समय आने पर आराम से बच्चों को लेकर मयोक चली जाएगी जो का फी
सुराक़ित है। परंतु अपने घर का क़्या ?
कुछ गडबड हुई तो उसे लूटने और जलने से कौन बचा सकता है ?
उन्ड़ें वह मकान लिए आठा महीने भी नहीं हुए थे । सारी जीवन की कमई, बँक से कर्ज, जेवरात
बेचने के बाद उन्ड़ोंने वह मकान लिया था और धीरे धीरे उसमें जरूरत की हर चीज सजाई थी।
यादि वह घर लूट लिया गया ! या जल दिया गया तो ?
उसका Øदय तेजी से धडकने लगा और मथे पर पसीने की बूंदे उभर आईं...
मुस्तफा ने टी.वाी. चालू किया ।
टी.वाी. के हर चैनल से शहर में होनेवाले हंगामें की खबरें आ रही थी।
‘‘शहर में एक वकील की हत्या के बाद एक राजनैतिक पक्षा के कार्यकर्ताओ का हंगाम,
पथराव,तोडफोड....’0ं खबरों में पहले उस वकील का संबंध उस पक्षा से इस हद तक बताया गया
कि वह उस पक्षा के लिए केस लडता था ।
फिर समचार में उस वकील को उस पक्षा का कार्यकर्ता बताया जाने लगा ।
और आंत में उसे उस राजनैतिक पक्षा का आध्यक्षा बना दिया गया ।
‘‘एक राजनैतिक पार्टाी के आध्यक्षा एक वकील की हत्या के बाद शहर में सख्त तनाव, पथराव
की घटनाए, दुकानेंे लूटने और छुरे बाजी की वारदाते... आमोल काटेकर नामक एक व्यािक़्त को
मर मर के लेगों ने आधमरा कर दिया... ढ़ाी प्रोवाीजन नामक दुकान को आग लगा दी गई ।
महादेव मोडिकल लूट ली गई।’’
जैसे समचार हर चैनल देने लगा और उसे सुन सुनकर तनाव और ड़िंसा बढने लगी । स्थिती गंभीर
होती जा रही थी । उसका मन डूब रहा था ।
उसे लगा शहर बारूद का ढेर बन चुका है और आब वह फटा
चाहता है ।
आंखो के सामने गुजरात के दंगो के चित्र और समचार नाच रहे थे ।
लेगों को जिंदा जलया जाना... चुन चुनकर लेगों को मरना... उनकी संपत्ताी नळ करना, उनोक
घरों, पूजा स्थले को मांदिरों में पारिवार्तित करना।
उसका मन डूबने लगा और आंखों के सामने आंधकार सा छाने लगा क़्या हमरा यही भग्य बन
गया है ?
बाहर लेगों की भीड टोलियों के रूप में जगह जगह जम रो रही थी । हर कोई प्लान बना रहा था
। यादि दंगा आरंभ हो तो क़्या किया जाए कुछ बचाव की तरकीबें सोच रहे थे तो कुछ लूटमर का
प्लान बना रहे थे । तो कुछ प्रातिकात्माक आ#कमण के लिए रणानिती तय कर रहे थे ।
जो लेग उस स्थान को आसुराक़ित आनुभव कर रहे थे उस स्थान को छोडकर सुराक़ित स्थानों पर
जा रहे थे ।
कुछ स्थानों पर पुलिस का नाम व निशान भी नहीं था तो कुछ स्थानों को पुलिस छावनी बना दिया
गया था । एेसा कुछ लेगों की सुरक्षा के लिए किया गया था । तो कुछ क़ोत्र के लेगो को आजाद
छोड दिया गया था । वे जो चाहे कर सकते है उनको रोकने वाल कोई नहीं है । तो कुछ क़ोत्रों को
इस प्रकार सील कर दिया गया था कि वहा पंछाी भी पर नहीं मर सकता था । और वह कुछ
नहीं कर सकते था । शहर से नापसंद घटनाओ के समचार निरंतर आ रहे थे।
हर समचार के बाद एेसा आनुभव होता था स्थिति गंभीर से गंभीर होती जा रही है । तनाव और
ड़िंसा जारी है ।
उसने कई बार घर फोन लगाने का प्रयत्न किया परंतु संपर्क स्थाफित नहीं हो सका । जिसके कारण
उसकी चिंता बढती जा रही थी । पत्नाी घर में आकेली है उसे मयोक जाने के लिए कहा था ।
पता नहीं वह मयोक गई भी है या नहीं ?
उसे मयोक चले जाना चाहिए । परंतु वह मयोक नहीं जाएगी। घर में जो जान आटकी है ।
इतनी कफ़्नाईयों से उन्ड़ोंने आपना घर बनाया है । घर की एक एक चीज में आपना खून पसीना
लगाया है । घरकी हर ईंट में उनोक आरमन सपने चुने हुए है । भल वह उस घर को छोडकर
किस तरह जा सकती है ?
उसे भय है - उसके यह सारे आरमनस सपने जलकर राख ना कर दिए जाए । यादि वह एेसा
सोच रही है तो यह उसकी मूर्खता है यादि वह घर में रही तो ना घर बचा सकेगी और ना अपने
आप और बच्चों क बचा सकेगी ।
एक निर्बल रुी भल अपने अपको किस तरह बचा सकती है? हजारों घटनाए उसके मस्तिय्र्क में
चकरा रही थी । एेसी रिुयों को वासना का शिकार बनाकर जिंदा जल दिया गया । बच्चों को
संगीनों और त्रिशूलों से छेदकर जल दिया गया ।
‘नहीं’ उसके होठाों से एक चीख निकल गई ।
‘क़्या हुआ ?’ मुस्तफा ने चौंककर पूछा ।
‘कुछ नहीं एक भयानक सपना देख रहा था’ ।
‘जागते हुए’ मुस्तफा ने मुस्कराकर पूछा ।
‘जो कुछ हो रहा है वह एक भयानक सपने से भी घिनावना है । एेसी स्थिती में जागना और
सोना सब बराबर है..’ उसने कहा
मुस्तफा उसकी बात समझ नहीं सका ।
शामको उसने तय किया वह थोडी दूर तक स्थिती का निरक्षाण करोक आएगा । मुस्तफा ने उसे
एेसा करने से रोका । वह घर जाने की मुर्खता ना करें।
उसने मुस्तफा को विश्वास दिलया वह घर जाने का प्रयत्न नहीं करेगा। थोडी दूर गया तो उसे एक
पारिचित मिल गया ।
‘जावेद भई आप घर जाने का प्रयत्न ना करें.. इसमें बहुत
खतरा है । आफा घर जिन रास्तों पर है वे खतरों से भरे है । आच्छा यही है आप रात में यहा
रूक जाए । वैसे स्थिति सामन्य हो गई है। परंतु कब क़्या हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता...’
‘नहीं मौं घर नहीं जा रहा हू बस यूंही थोडी दूर तक टहलकर वापस आ जाऊंगा’ उसने उत्तर दिया

‘वैसे आप सुराक़ित रास्तों से घर जाना चाहे तो घर जा सकते है । उन रास्तों पर कोई खतरा नहीं
है । मौं अ पको घर छोड देता हू ...।’
उसने उसे मोटर साईकल पर बिफ़्या और सुराक़ित रास्तों से होते वे आगे बढे ।
उन रास्तों मोहललों से गुजरते उन्ड़ें आनुभव हो रहा था जैसे वहा पर बहुत कुछ हुआ है ।
हर जगह भीड जम हुई थी । राजनेता और वॄद्ध, बुजुर्ग लेग भीड को आपनी आपनी तौर पर
समझाने का प्रयत्न कर रहे थे । और भीड को कुछ आनुचित करने से रोक रहे थे ।
#कोध और उत्साह में भरे नवयुवक उनसे तरह तरह के प्रश्न पूछ रहगे थे और अपने पर बार बार
होने वाले आन्यायों का हिसाब मांग रहे थे ।
घर के समीप प हुंचा तो पीछे वाली गली में हजारों लेगों की भीड जम हुई थी ।
जिन्ड़े दो लीडर समझाकर स्वयं पर नियंत्रण रखने और धैर्य से काम लेने के लिए कह रहे थे ।
घर आया तो उस पर पत्नाी भडक उठाी
‘इतना समझाने पर भी आप नहीं मने । अपको समझायाथा ना आप घर ना आए? आपनी जान
खतरे में डालकर चले आए । यादि कुछ आनुचित हो जाता तो ..?’
‘नहीं एेसी बात नहीं है मौं स्वयं को पूरी तरह सुराक़ित आनुभव करने के बाद ही यहा आया हू
एक पारिचित मिल गया था उसने मोटर साइकिल पर यहा तक लकर छोडा...’
रात तक स्थिती सामन्य हो गई थी । यह तय था रात आतंक और तनाव में गुजरेगी ।
परंतु आतंक का एक दिन तो बीत गया था । द द